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पंचम अध्याय
(निर्वचनके आधार एवं यास्कके निर्वचन) (क) ध्वन्यात्मक आधार एवं यास्क के निर्वचन ____ध्वनि :- ध्वनि शब्द ध्वन् शब्दे धातुसे इ प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है। संस्कृत में ध्वनि शब्दका प्रयोग व्यापक रूपमें हुआ है। इसे भारतीय दार्शनिकों एवं वैयाकरणोंने इतना महत्व दिया है कि यह भाषा तथा साहित्यमें एक विशिष्ट अंग के रूपमें प्रचलित है। महर्षि पतंजलि, भर्तृहरि आदि मनीषियोंने तो सृष्टिकी सम्पूर्ण प्रक्रियाका अर्थ सम्पादक इसी ध्वनिको स्वीकार किया है। वैयाकरणोंने ध्वनिके लिए स्फोट तत्वका प्रतिपादन किया और कहाकि पदोंका अर्थ बोध तो स्फोटसे होता है.
यः संयोग वियोगाम्यां करणैरुपजन्यते
स स्फोटः शब्दजाः शब्दाः ध्वनयोन्यैरुदाहृताः। इन्द्रियोंके संयोग एवं वियोगसे जो उत्पन्न होता है वही शब्दज शब्द स्फोट है इसे ही ध्वनि भी कहा जाता है। भाषा विज्ञानमें ध्वनिका तात्पर्य वर्णोसे है। ध्वनि भाषाकी एक इकाई एवं आधार है जिस पर सम्पूर्ण वाङ्मय आधारित है।
___ अंग्रेजीका फोन (इदहा) शब्द ध्वनिका प्रतीक है। संस्कृतका भण अंग्रेजी के फोन का समानान्तर है। संस्कृत भाषामें ध्वनिका सम्बन्ध उस वैखरी वाक् से है जिसका प्रयोग मानव करता है। यह वैखरी वाक् ही भाषाका विषय है। ध्वनिके लिए वर्ण, अक्षर आदिका भी प्रयोग होता है। अक्षरके निर्वचनमें यास्क कहते हैं- 'न क्षरति' अर्थात् उसका विनाश नहीं होता; न क्षीयते' वह क्षीण नहीं होता तथा 'अक्षयो भवति' अर्थात् वह अक्षय होता है। अक्षरके ये निर्वचन सम्पूर्ण वाङ्मयके ध्वनि सिद्धान्तके प्रदर्शक हैं। अक्षर या ध्वनिके प्रस्फुटनमें वायुका योग रहता है। हृदय स्थित वायुको अभिव्यक्तिके लिए उठोरित किया जाता है। वायु स्वर-नलिकासे होकर कण्ठ भागमें आती है यहां उसे विभिन्न उच्चरणांगोंसे टकराना पड़ता है। परिणामत: ध्वनिकी उत्पत्ति हो जाती है।
ध्वनि जिसे अक्षर भी कहा जाता है अविनाशी एवं नित्य है। अक्षर को वर्ण भी कहा जाता है। वर्ण दो प्रकार के होते हैं-स्वर तथा व्यंजन। स्वर,जो बिना किसी अन्य ध्वनियों की सहायता से बोला जाता है- श्वृ धातु से निष्पन्न होता है, जिसका अर्थ होता है ध्वनि करना। व्यंजन के उच्चारण में स्वर की सहायता अपेक्षित होती है। व्यंजन शब्द वि + अज प्रकट करना धातु से निष्पन्न होता है, जिसका अर्थ होता है प्रकट होना । व्यंजन
९४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क