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निरुक्तमें अनेक शब्द सादृश्यके आधार पर विवेचित हैं।
प्रकरण :- अर्थविनिश्चयमें प्रकरणकी भूमिका महत्त्वपूर्ण हैं। निर्वचनके क्रममें भी प्रकरणका ध्यान रखना पड़ता है। देवताओंका निर्वचन यास्क प्रकरणानुरूप करते हैं क्योंकि देवतागण अपने गुणकर्मादिके कारण अनेक नाम धारण करते हैं।४३ विभिन्न देवताओंके विशेषणमें कर्म सादृश्यके आधार पर समानता रहती है। वहां अर्थका विनिश्चय प्रकरणके अनुरूप होता है।
उपमा :- निरुक्तमें उपमाके प्रसंगमें गार्ग्यका मत उद्धृत है- यदत्तत्सदृशमिति गार्ग्य:४४ अर्थात् जो वह नहीं है उसके सदृश है, को उपमा कहा जाता है। वर्णोपमा के उदाहरणमें निरुक्तमें प्रयुक्त हिरण्य - रूप४५ शब्दको देखा जा सकता है। उपमा के द्वारा अर्थ प्रकाशन शब्द शास्त्र एवं दर्शनशास्त्रमें भी मान्य है। लुप्तोपमा के प्रसंगमें यास्क निरुक्तमें कहते हैं-अथ लुप्तोपमान्यर्थोपमानीत्याचक्षते । सिंहोव्याघ्र इतिपूजायाम्। श्वा काक इति कुत्सायाम् । ४६ उपमाके लिए प्रयुक्त सिंह एवं व्याघ्र शब्द पूजा या प्रतिष्ठाके अर्थको द्योतित करते हैं यथा- पुरुषसिंह, पुरुषव्याघ्र आदि । इसी प्रकार श्वा एवं काक शब्द निन्दा अर्थको द्योतित करते हैं। यथा नर श्वा एवं नर काक आदि । व्यवहार :- अर्थ विनिश्चयका महत्त्वपूर्ण आधार व्यवहार भी है। यास्कका कहना है कि शब्द जब व्यवहारमें आते हैं तभी विचारके योग्य होते हैं । ४७ लोकमें प्रयुक्त नाम व्यवहारके लिए ही होते हैं । ४८ शब्दोंके अर्थ प्रचलनमें व्यवहार इसी प्रकार अपना स्थान रखता है।
देशभेद:- अर्थ विनिश्चयमें देश भेदका भी प्रभाव देखा जाता है। एक ही शब्द एक देशमें किसी अर्थ में प्रयुक्त होता है तो दूसरे देशमें भिन्न अर्थमें । यास्कने निरुक्तमें स्पष्ट किया है कि प्रकृति एक स्थानमें बोली जाती है तथा विकृति दूसरे स्थानमें। गति अर्थ वाला शव धातुका प्रयोग कम्बोज देशमें होता है तथा इससे बने शब्द शवका प्रयोग आर्य देशमें होता है। कम्बोजमें शव जाना अर्थमें प्रयुक्त होता है लेकिन आर्यदेशमें शव मृतदेहके अर्थ में । इसी प्रकार दा धातु काटना अर्थ में प्राच्य देश तथा इससे बना शब्द दात्र का प्रयोग उदीच्य देशमें होता है । ४९
यास्क के निर्वचनों का अर्थात्मक आधार :- अर्थ शब्दका आत्मिक रूप है। निर्वचन शास्त्र का मूल प्रयोजन है शाब्दिक अर्थों का विनिश्चय । शब्द के विविध अर्थों के उत्सका अन्वेषण ही इसका उद्देश्य है। किसी शब्द के
१०९ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क