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अध्यायमें संकलित देवताओंके नाम पृथिवी स्थानीय , अन्तरिक्ष स्थानीय एवं द्युस्थानीय हैं। यह अध्याय ६ खण्डोंमें विभाजित है। इस अध्यायके कुल शब्दोंकी संख्या खण्डानुसार निम्नलिखित हैं :
पृथ्वीस्थानीय देवता नाम २. ठठ ठ
१३
os in x s
३६
अन्तरिक्षस्थानीय देवतानाम अन्तरिक्षस्थानीय देवस्त्री नाम धु स्थानीय देव नाम कुल शब्द संख्या :
१५१ निघण्टुके शब्दोंकी संख्या काण्डानुसार इस प्रकार है :१. नैघण्टु काण्ड
१३३८ २. नैगमकाण्ड
२७९ ३. दैवतकाण्ड
१५१ निघण्टुके कुल शब्दोंकी संख्या -
१७६८ यास्कके निरुक्तकी रूपरेखा
यास्कका निरुक्त निघण्ट्रका व्याख्यान ग्रन्थ है। महर्षि यास्कने उक्त विषय का स्पष्टीकरण निरुक्तके प्रारंभमें ही कर दिया है। जिस निघण्टुका व्याख्यान यह निरुक्त है, वह पंचाध्यायी है। पांच अध्याय होने पर भी विषयों की पृथक्ता के कारण इसमें काण्डत्रयात्मकता का आधान किया गया है।४ प्रथम नैघण्टुक काण्ड में पर्याय शब्द, एकार्थक अनेक शब्द एवं एकार्थक अनेक धातुओंका संग्रह हुआ है। इन शब्दोंकी व्याख्या निरुक्त्तके प्रथमसे लेकर तीन अध्यायोंमें समाप्त होती है। शब्दोंका निर्वचन निरुक्तके द्वितीय अध्यायमें है। प्रो. राजवाड़े का कहना है कि नैघण्टुक काण्डमें कुछ ऐसे शब्द आ गये हैं जो वैदिक साहित्यमें उपलब्ध नहीं होते। कुछ शब्द जिनका अर्थ यहां प्रयुक्त है इन अर्थोंमें वहां वे शब्द नहीं मिलते।२५ प्रो. स्कोल्ड का कहना है कि पहले निघण्टु नाम केवल तीन अध्यायों के लिए हुआ था जिसे नैघण्टुक काण्ड कहते हैं। ज्ञातव्य है नघण्टुक शब्द निघण्टु शब्दसे निर्मित है। बादमें चलकर नैगम तथा दैवत काण्डोंके लिए भी निघण्टु शब्दका प्रयोग होने लगा।२६ प्रो. स्कोल्ड का विचार बहुत अंशोंमें ९० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क