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विषय निर्दिष्ट हैं। इसी तरहकी बात अन्य स्थलोंमें भी देखनेको मिलती है। ब्राह्मण ग्रन्थ कर्मकाण्ड,. उपासना काण्ड एवं ज्ञान काण्डमें विभाजित है जिसमें कर्मकाण्ड ब्राह्मण, उपासना काण्ड आरण्यक तथा ज्ञान काण्ड उपनिषद् कहलाता है। तीनोंका सम्मिलित रूप ब्राह्मण ग्रन्थ कहलाता है। उसमें कर्मकाण्डका अलग विधान किया गया है। इसी प्रकार निघण्टुके तीनों काण्डोंके विषयान्तर होने पर भी प्राधान्येन व्यपदेशा : भवन्ति इस नियमके अनुसार निघण्टु नामकरण यथार्थ है। फलत: तीन अध्यायों में व्याप्त नैघण्टुक काण्ड प्राधान्यव्यपदेश के कारण ही अपना नैघण्टुकत्व स्थापित करता है।
नघण्टुक काण्डके प्रथम अध्यायमें १७ खण्ड हैं। इन खण्डोंमें संकलित शब्द भौतिक एवं प्राकृतिक वस्तुओंके नाम हैं। पृथ्वी, हिरण्य, अन्तरिक्ष, नभ, रश्मि, दिक्, रात्रि आदि शब्द प्रधान रूपमें पर्यायके साथ संकलित हैं। इसके अतिरिक्त उनसे सम्बद्ध क्रियाओंको द्योतित करने वाले शब्द भी उपलब्ध होते हैं। प्रथम अध्यायके कल शब्दोंकी संख्या खण्डानुसार निम्नलिखित हैं.
१ पृथिवीनाम २१, २. हिरण्यनाम १५, ३. अन्तरिक्षनाम १६, ४. नभनाम ६,५. रश्मिनाम १५,६. दिनाम ८,७. रात्रिनाम २३,८. उषस नाम १६,९. अहरनाम १२, १०. मेघनाम ३०, ११. वाङ्नाम ५७, १२. उदकनाम १००, १३. नदीनाम ३७, १४. अश्वनाम २६, १५.आदिष्टोपयोजन १०, १६. ज्वलतिकर्मा ११, १७. ज्वलत: नाम ११, कुल संख्या ४१४.
निघण्टुका द्वितीय अध्याय २२ खंडोंमें विभाजित है। इस अध्यायमें मनुष्य, मनुष्यके कर्म, उसके विभिन्न अंग, अपत्य आदिके अतिरिक्त अनेक प्रकार की क्रियाओंके द्योतक शब्द संकलित हैं। इस अध्यायके कुल शब्दोंकी संख्या खण्डानुक्रम से निम्नलिखित है :
१. कर्मनाम २६, २. अपत्य नाम १५, ३. मनुष्य नाम १५, ४. वाहुनाम १२, ५. अंगुलिनाम २२, ६. कान्तिकर्मा १८, ७. अन्ननाम २८, ८. अत्तिकर्मा १०, ९. बलनाम २८, १०. धननाम २८, ११.. गो नाम ९, १२. ऋध्यतिकर्मा१०, १३. क्रोधनाम ११, १४. गतिकर्मा १२२, १५. क्षिप्रनाम २६, १६. अन्तिकनाम ११, १७. संग्राम नाम ४६, १८. व्याप्तिकर्मा १०, १९. वध कर्मा ३३, २०. वज्रनाम १८, २१. ऐश्वर्यकर्मा ४, २२. ईश्वरनाम ४, कुल योग ५१६.
निघण्टुका तृतीय अध्याय ३० खण्डों में विभाजित है। इस अध्यायमें प्राय:
८८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क