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लगता है। अत: यास्क ही निघण्टुके कर्ता हैं। इस आधार पर मया समाम्नायः समाम्नात : ' ऐसा समझना उपयुक्त होगा।
ऋग्वेदके प्रसिद्ध भाष्यकार वैकटमाधव निघण्टुको यास्ककृत मानते हैं। वे ऋग्वेद की मंत्र संख्या ७।८४।४ की व्याख्यामें लिखते हैं कि पृथ्वीकें २१ नाम यास्कने पढ़ा है। १३ मधुसूदन सरस्वतीने भी शिवमहिम्न स्तोत्रकी व्याख्यामें लिखा है कि आचार्योंके निघण्टु उनके निरुक्तके अन्तर्गत है तथा वर्तमान समय में जिस निघण्टुकी उपलब्धि है उसके कर्ता भगवान यास्क हैं । १४
महाभारतके मोक्षपर्वमें वर्णित श्लोकोंसे पता चलता है कि निघण्टुके कर्ता यास्क न होकर प्रजापति कश्यप हैं।१५ इस वर्णनमें वृषाकपि शब्द आया है। वृषाकपि शब्दका उल्लेख निघण्टुके पांचवें अध्यायमें है। मोक्षपर्वमें वर्णित श्लोकोंसे पता चलता है कि निघण्टु के व्याख्यानकर्ता यास्क हैं
'शिपि विष्टेति चाख्यायां हीनरोमा च योऽभवत् तेनाविष्टं च यत्किचित् शिपिवष्टेति चस्मृतः ॥ यास्को मामृषिरव्यग्रोऽनेक यज्ञेषु गीतवान् शिपिविष्ट इतिह्यस्मात् गुह्यनामधरोप्यहम् ॥ स्तुत्वा मां शिपिविष्टेति यास्क ऋषिरुदारधीः मठप्रसादादधोनष्टं निरुक्तमधिजग्मिवान् ।।"
इस उद्धरण से स्पष्ट है कि निघण्टुके कर्ता प्रजापति कश्यप हैं तथा यास्क इसके व्याख्याकार हैं। डा. सिद्धेश्वर वर्मा भी इसी मतको मानते हैं।* डा. लक्ष्मणस्वरूपका विचार है कि निघण्टु अनेक आचार्यों के परिश्रमका फल है।
उपर्युक्त विवेचनोंमें दोनों प्रकारके मत प्राप्त होते हैं लेकिन निघण्टुके व्याख्याता महर्षि यास्क हैं, इसे सभी लोग मानते हैं। अनेक निघण्टु ग्रन्थोंका संकेत यास्कके निरुक्त से ही प्राप्त हो जाता है। निरुक्तके सप्तमाध्यायके अनुसार स्पष्ट हो जाता है कि अनेक निघण्टु थे। १९ वेदकी प्रत्येक शाखासे सम्बद्ध अलग-अलग निघण्टु ग्रन्थ थे इसकी भी चर्चा यत्रतत्र प्राप्त होती है। २० विभिन्न संकेतों के आधार पर लगभग २० निघण्टु ग्रन्थोंका पता लगता है। इनमें कुछ तो ग्रन्थ रूपमें उपलब्ध होते हैं तथा कुछ का संकेत मात्र मिलता है । प्रकृत निघण्टुके रचयिता यास्क ही हैं क्योंकि समाम्नाय : समाम्नातः के द्वारा कार्यकी क्रमिक अनुवृत्तिका बोध होता है। वृषाकपि शब्द जो इस
८६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क