________________
विकारको स्पष्ट किया। ज्ञातव्य है पाणिनिने लौकिक एवं वैदिक शब्दोंके स्वरूपको स्थायित्व प्रदान करनेके लिए नियमबद्ध कर दिया। दोनोंका कार्य प्रकारमें भेद रखते हुए भी एक दूसरेसे महत्त्वमें कम नहीं।
लौकिक संस्कृतके अभ्युदय कालमें तथा वैदिक संस्कृतके अवसान काल में यास्कका समय माना जा सकता है, क्योंकि इनका कार्यक्षेत्र इसी कालकी ओर संकेत करता है। पाणिनिका समय लौकिक संस्कृतके समृद्धि काल का है। व्यापक साहित्यके आधार पर ही शब्दोंका व्युत्पादन पाणिनिके शब्द कौशलका प्रतीक है। फलत: पाणिनिसे यास्क पूर्व के हैं। दोनों आचार्योंकी भाषा एवं सिद्धान्तोंका अनुसंधान दोनोंके काल पार्थक्यको स्पष्ट कर देता है। दुर्भाग्यकी बात है कि अभी तक पाणिनिके समयका यथावत् निर्धारण नहीं हो पाया है।
कुछ विद्वान् पाणिनिको यास्कसे प्राचीन मानते हैं। इन विद्वानोंमें मैक्समूलर, वोथलिंग, सत्यव्रत सामश्रमी आदि उल्लेख्य हैं। मैक्समूलरका कहना है कि यास्कका 'नामानि आख्यातजानि' (सभी नाम आख्यातज हैं) नवीन सिद्धांत वाजसनेय प्रातिशाख्यकार के पदविभाग, नाम पदों के तद्धित कृदन्त प्रकार आदि को अपर्याप्त समझनेका परिणाम है। इनके आधार पर यास्क प्रातिशाख्यकार कात्यायनसे अर्वाचीन हैं। प्रातिशाख्यकार कात्यायन और वार्तिककार कात्यायन को ये एक ही मानते हैं। फलतः यास्क पाणिनिसे तो अर्वाचीन हैं ही वार्तिककार कात्यायन से भी अर्वाचीन हैं।
मैक्समूलरका उपर्युक्त मत कथमपि संगत नहीं है। ज्ञातव्य है कि जिस 'नामानि आख्यातजानि' सिद्धांतके आधार पर मैक्समूलर यास्कको कात्यायनसे अर्वाचीन मानते हैं, वह सिद्धांत यास्कसे भी पूर्व शाकटायन का है। शाकटायन का उल्लेख स्वयं पाणिनिने भी अपनी अष्टाध्यायीमें किया है। अतः शाकटायन निश्चय ही पाणिनिसे भी पूर्व के हैं। अगर यास्कका उपर्युक्त सिद्धान्त कात्यायन का माना जाय तो स्वयं पाणिनिभी कात्यायनसे पीछेके सिद्ध होंगे। निर्विवाद रूप से पाणिनि कात्यायनसे पूर्ववर्ती हैं। अत: निष्कर्ष रूपमें कहा जा सकता है कि मैक्समूलरका मत प्रलापमात्र है।
मैक्समूलर, वोथलिंग आदि विद्वानोंके मतसे प्रभावित सत्यव्रतसामग्रमीजी भी पाणिनिको यास्कसे प्राचीन मानते हैं। इनकी मान्यताके अनुसार वार्तिककार कात्यायनसे तो यास्क प्राचीन हैं लेकिन पाणिनीसे अर्वाचीन। अपने सिद्धान्त की पुष्टि में इनका कहना है कि पाणिनि ही आदि व्याकरण प्रणेता हैं।निरुक्तमें आये व्याकरणके पारिभाषिक
७४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क