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नाम शक्वरी पड़ गया | स्पष्ट ही शक् धातुकी ओर यहां भी संकेत प्राप्त होता
है।
पंक्ति एक छन्द भेद है। यह एक वैदिक छन्द है, जिसमें पांच पाद होते हैं। प्रत्येक पाद में आठ, आठ अक्षर होते हैं । पंक्तिके सम्बन्धमें ऐतरेय ब्राह्मण में कहा गया है-'पंचपदा पंक्तिः' अर्थात् पांच पद वाली पंक्ति होती हैं। कौषीतकि ब्राह्मणमें –'अथ वै पंक्तेः पचंपदानि'13 सामवेदके दैवत ब्राह्मण में – 'पंक्तिः पंचिनी पंचपदा-14 उपर्युक्त स्थलोंमें पंच पंदसे युक्तको ही पंक्ति कहा गया है। गोपथब्राह्मण भी पंक्तिके पंच पदत्वको स्वीकार करता है -'अथ या पंक्तिः पंचपदा निरुक्तमें भी - 'पंक्तिः पंचपदो कहा गया है । पंक्ति शब्दका निर्वचन सर्वत्र एक समान है जो आकृति पर आधारित है।
ऋग्वेदमें गायत्री शब्दके सम्बन्धमें कहा गया है- 'ऋचां त्वः पोषमास्ते पुपुष्वान् गायत्रंत्वो गायति शक्वरीषु'" इस मंत्रमें गायत्रशब्दको स्पष्ट करनेके लिए गायति क्रिया पद उपस्थापित है। गायति क्रियाका सम्बन्ध उक्त गायत्री संज्ञा पदसे स्पष्ट प्रतीत होता है। ऋग्वेद में अन्यत्र भी गायत्री शब्द गायति क्रिया पद द्वारा संकेतित है। इसके अनुसार इस शब्द में स्तुत्यर्थक गै धातुका योग है। सामवेद के दैवत ब्राह्मणमें कहा गया है – 'गायत्री गायतेः स्तुति कर्मणः'' यहां भी गायत्री शब्दमें गैधातुका योग ही स्पष्ट किया गया है। निरुक्तमें गायत्री शब्दको स्तुत्यर्थक गैधातुसे ही निष्पन्न माना गया है। यहां त्रिगमन- (त्रि+ गम्) के कारण भी गायत्री माना गया है | गायत्री छन्दमें तीन पद होते हैं। फलतः त्रि+गम को विपरीत कर भी गायत्री शब्द बनाया गया है। दैवत ब्राह्मण में ही प्राप्त होता है कि गाते हुए ब्रह्माके मुखसे वह गिर पड़ी फलतः गै+पत् के योगसे गायत्र माना गया।"
विष्णु वैदिक देवता हैं जो सर्वव्यापी हैं । विष्णु शब्दके सम्बन्धमें यजुर्वेदमें कहा गया है
'अदित्यै रास्नासि विष्णोर्वेष्यो..22 इस मन्त्रमें विष्णु शब्दकी निरुक्ति प्राप्त है। यहां विष्णु को विष्लव्याप्तौ धातुसे निष्पन्न माना गया है। विष् धातुसे निष्पन्न विष्णु शब्द प्रत्यक्ष वृत्याश्रित है। विष्णु शब्दकी निरुक्तिं वृहद् देवतामें भी मिलती है
४६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क