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(२) पदपाठ- सामवेदके पदपाठके रचयिताके संबंध में गार्यका ही नाम आता है। इस संबंधमें निरुक्तके टीकाकार दुर्गाचार्य एवं स्कन्ध स्वामीका भी यही मत है। वाजसनेयी प्रातिशाख्यके उव्वट भाष्यमें गार्ग्यके पदपाठ विषयक मतका उल्लेख मिलता है। ३७
पुनरुक्तानि लुप्यन्ते पदानीत्याह शाकलः
अलोप इति गार्ग्यस्य काण्वस्यार्थवशादिति।। अर्थात् गार्यके अनुसार पदपाठमें पुनरुक्त पदोंका लोप नहीं होता है।
(३) तक्षशास्त्र- आपस्तम्ब शुल्बसूत्रमें उद्धृत एक श्लोकके आधार पर इनके द्वारा विरचित तक्षशास्त्रका भी पता चलता है। उसके टीकाकार करविन्दाधिपका भी यही मत है।३८
(४) शालाक्य तंत्र- सुश्रुतके टीकाकार डल्हणका कहना है कि धन्वन्तरिके शिष्य गायेने शालाक्य तन्त्रकी रचना की।
(५) अलंकार लक्षण ग्रन्थ- निरुक्तमें इनके उपमा लक्षण३९ उद्धृत होनेसे स्पष्ट होता हैकि उन्होंने अलंकारोंपर कोई लक्षण ग्रन्थ्य अवश्य लिखा होगा।
निर्वचन सिद्धान्त :- गार्ग्य उपसर्गोंका स्वतंत्र अर्थ मानते हैं४० तथा नाम एवं आख्यातसे पृथक् भी उसका अस्तित्व है इसकी स्वीकृति प्रदान करते हैं। इनका कहना हैकि सभी-नाम धातुज नहीं होते।४१
उपर्युक्त विवेचनसे स्पष्ट है कि ये वहुश्रुत थे। शब्दशास्त्र , निरुक्त, आयुर्वेद, पदपाठ आदिकी इन्हें पूर्ण जानकारी थी। सामवेदके पदपाठका निर्माण कर तो ये निरुक्तकारोंमें अग्रगण्य हो गये, क्योंकि निरुक्तके सूत्रपाठ-या निर्वचन प्रकारका सूत्रपात सामान्य रूपमें पदपाठसे ही माना जाता है। (च) शाकपूणिः
आचार्य शाकपूणि मूल रूप में निरुक्तकार हैं। यास्क ने इनका स्मरण निरुक्तकार के रूप में किया है। निरुक्त के कुछ वर्णनों से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है-शाकपूणि: संकल्पयांचक्रे-सदेिवता जानामीति। तस्मै देवतोभयलिंगा प्रादुर्वभूव। तां न यज्ञे। तां पप्रच्छ। विविदिषाणित्वेति। सा अस्मै एतामचमादि देश। एषा मद्देवतेति।४२ अर्थात् आचार्य शाकपूणि ने संकल्प किया मैं सभी देवताओं को जानता हूं। उनके समक्ष उभय लिंग देवता प्रकट हुए । उसने उस देवता को न जाना । शाकपूणि ने उससे पूछा- मैं तुझे जानना चाहता हूं। उसने उसे यह ऋचा दी और कहा कि यह ऋचा मद्देवता है । अर्थात् इस ऋचा
६० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क