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निरुक्तकी रचना अवश्यकी होगी। वृहद् देवतामें इनके उल्लेखसे इन्हें वेद व्याख्यानकर्ता कहा जा सकता है।६२
निर्वचन सिद्धान्त :- ध्वनिपरिवर्तनमें सम्प्रसारणकी मान्यता इन्हें अभीष्ट थी। वृ धातुसे उर्वी इसका स्पष्ट निदर्शन हैं। निरुक्तकार होनेके चलते निर्वचनका सामान्य सिद्धान्त भी इन्हें अभीष्ट होगा। (ज) आचार्य गालव
आचार्य गालव-का स्मरण यास्क-ने निरुक्तकार-के रूपमें किया है। अष्टाध्यायीसे पता चलता हैकि ये वैयाकरण भी थे।९३ निरुक्तमें शिताम-शितिमांस शब्दके निर्वचनमें इनके सिद्धान्तका उल्लेख हुआ है-'शितिमांसतो मेदस्त इति गालव : '६४ अर्थात् शितिमांस शब्दसे शिताम बनता है। शितिमांस शब्दका अर्थ है श्वेत मांस या मेद। गालव शब्दको अगर तद्धित प्रत्ययान्त माना जायतो इनके पिताका नाम गलव होगा। महाभारतके शान्तिपर्वमें पांचाल वाभ्रव्य गालवको क्रमपाठ और शिक्षापाठका प्रवक्ता कहा गया है।६५ यदि वे ही गालव निरुक्तकारभी हो तो वे पांचाल देशके रहने वाले होंगे। वाभ्रव्य उनका गोत्र होगा। सुश्रुतके टीकाकारने गालवको धन्वन्तरिका शिष्य कहा है। ६६ इसके अतिरिक्त वृहदेवता,६७ ऐतरेय आरण्यक६८ एवं वायु पुराण६९ में भी इनका उल्लेख प्राप्त होता है। पाणिनिने भी अपनी अष्टाध्यायीमें इनका स्मरण किया है।७० अत: स्पष्ट है कि ये यास्क एवं पाणिनिसे पूर्व के हैं।
रचनाएं :- विश्व विख्यात वैयाकरण पाणिनिने गालवका उल्लेख एक वैयाकरण के रूप में किया है।७० फलतः इनका कोई व्याकरण ग्रन्थभी रहा होगा। व्याकरण के नियमों के प्रतिपादन क्रम में ही पाणिनिने अपनी अष्टाध्यायीमें इनका उल्लेख किया। इन सिद्धान्तों के आधार पर स्पष्ट होता है कि पाणिनि के पूर्व गालव की व्याकरण विषयक मान्यता थी। गालवके सिद्धान्तों ने पाणिनि को भी प्रभावित किया। सुश्रुत की टीका में इन्हें धन्वन्तरिका शिष्य बतलाया गया है।७१ इनका आयुर्वेद विषयक कोई ग्रन्थ सम्प्रति उपलब्ध नहीं होता तथापि इतना कहा जा सकता हैकि ये आयुर्वेद शास्त्र के ज्ञाता थे। क्रम पाठ के प्रर्वतक के रूप में इनका वर्णन प्रातिशाख्यों में मिलता है।७२ वृहद्देवता ५ में प्राप्त वर्णनों से पता चलता है कि दैवत काण्ड पर इनका निर्वचन स्वतंत्र रूप में हुआ होगा। वृहद्देवता में ही इन्हें पुराणकवि कहा गया है।७३ वायु पुराण के अनुसार ये ज्योतिषी भी थे। अतः इनके ज्योतिष ग्रन्थकी संभावना भी की जा सकती है। वात्स्यायन के काम सूत्र में भी इनका उल्लेख प्राप्त
६३ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क