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होता है। इस उल्लेखके अनुसार पता चलता है, कि इन्होंने सात अध्यायोंमें काम शास्त्रका वर्णन किया है। कामशास्त्र विषयक ग्रन्थभी इनके अवश्य होंगे।७४ वायु पुराणमें प्राप्त विवरणसे इनके मतका पता चलता है। इनके मतके अनुसार मेरूकर्णिका के बढ़ते आकार शराब के ऐसे हैं।७५ इससे पता चलता है कि इन्होंने भूगोल सम्बन्धी सिद्धान्तोंका भी संग्रह किया है।
निर्वचन सिद्धान्त :- निरुक्तमें प्राप्त उल्लेखके अनुसार इनके निर्वचन सिद्धान्तके संबंध में अंतिम रूपसे कुछ कहा नहीं जा सकता। शितिमांस शब्दसे इन्होंने शिताम शब्दको निष्पन्न माना।६ इससे पता चलता हैकि वर्णलोप आदि निर्वचनके मान्य सिद्धान्त इन्हें अभिप्रेत है। वृहद् देवतामें नामके आधार निर्धारणमें इनका सिद्धान्त प्रतिपादित है। इनके सिद्धान्त के अनुसार नामकरणके नौ आधार हैं।७७ इन आधारोंमें क्रिया या आख्यात भी एक मुख्य आधार है। अतः इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि नामके आख्यातज सिद्धान्तके भी ये समर्थक हैं। (झ) आचार्य तैटिकि:
निरुक्तमें इनका उल्लेख निरुक्तकारके रूपमें हुआ है यास्क इनके मतोंका उल्लेख दो स्थलों पर करते हैं। शिताम शब्दके निर्वचन-प्रसंगमें-श्यामतो यकृत इति तैटीकि:७८ अर्थात् श्यामसे शिताम शब्द बना है। श्याम यकृतको कहते हैं क्योंकि वह श्याम वर्णका होता है। पुन: वीरिट शब्दके निवर्चनमें यास्कके द्वारा उपस्थापित किया गया इनका मत-वीरिटं तैटीकिरन्तरिक्षमेवाह। पूर्व वयतेस्तरमिरतेर्वयांसीरन्त्यस्मिन् भांसिवा७९ अर्थात् तैटीकिके अनुसार वीरिटका अर्थ अन्तरिक्ष होता है। पूर्वपद वी पक्षीका वाचक है तथा उत्तरपद इर्धातु गत्यर्थक या भासनार्थक है। अन्य स्थलोंमें इनका उल्लेख निरुक्तमें नहीं प्राप्त होता। निरुक्तके अतिरिक्त अन्य स्थलोंमें भी इनका विशेष उल्लेख नहीं प्राप्त होता। इतना तो निश्चित है कि ये यास्कके पूर्ववर्ती या समकालीन रहे होंगे। पूर्ववर्तीकी संभावना अधिक है क्योंकि किसी व्यक्तिके सिद्धान्तकी मान्यता मिलने परही विशिष्ट लोगोंके द्वारा उसका उल्लेख होता है।
रचनाएं :- यास्क इनका उल्लेख निर्वचनके प्रसंगमें करते हैं। अत: यास्कके समय इनका निर्वचन शास्त्र प्रचलित होगा।
निर्वचन सिद्धान्त :- श्यै धातुसे श्याम तथा शिताम माननेके चलते लगता ये धातुज सिद्धान्तके समर्थक थे। श्यामसे शिताम मानने में रूपात्मक आधारकी उपलब्धि
६४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क