________________
रूपमें स्थित उपसर्ग भी सार्थक हैं, अर्थप्रकाशित करते हैं।२६ निरुक्तमें ही-नाम आख्यातज है इस सिद्धान्तके प्रतिपादक शाकटायन एवं विभिन्न नैरुक्तोंके विपक्षमें यास्क गार्यके मतका उल्लेख करते हैं। गार्ग्य एवं कुछ वैयाकरण सभी नामको धातुसे निष्पन्न नहीं मानते।२८ निरुक्तकें तृतीय अध्यायमें उपमा विवेचन प्रसंगमें यास्क गार्ग्यके मतका उल्लेख करते हैं-अथात:उपमा। यदतत्तत्सदृशमिति गार्ग्य :२९ अर्थात् "जो वस्तु वह न हो और उसके समान लगती हो, उसे उपमा कहते हैं।३० यह गार्यका मत है।
निरुक्त्तके अतिरिक्त अन्य ग्रन्थोंमें भी गार्ग्यका उल्लेख प्राप्त होता है। गार्ग्यकी जीवनी, समय, रचनाओं तथा सिद्धान्तकी जानकारीके लिए उन ग्रन्थोंका पर्यवेक्षण आवश्यक है।
सामवेदका पदपाठ गार्य द्वारा विरचित माना जाता है। यास्कने मेहना पदका अर्थ प्रथमत: शाकल्यके तदनन्तर गायेके पदपाठके आधार पर दिया है।३१ सामवेदके पदपाठमें इन्होंने उपसर्गोंका स्वतंत्र सार्थक प्रदर्शन किया है। आचार्य शाकल्य सामवेदके उसी पद पाठमें उपसर्गोका उसरूपमें पृथक प्रदर्शन नहीं करते। बृहद्देवतामें यास्क और स्थीतरके साथ गार्यका भी मत उद्धृत है।३२ ऋक् प्रातिशाख्यमें गार्ग्यका उल्लेख प्राप्त होता है।३३ आचार्य पाणिनिने भी इनका उल्लेख अपनी अष्टाध्यायीमें किया है।३४ सुश्रुतके टीकाकार डल्हणने इनको धन्वन्तरिका शिष्य माना है तथा इनकेसाथ गालवका भी निर्देश किया है।३५
उपर्युक्त उद्धरणों एवं वर्णनोंसे इनके समयके संबंधमें पता लगायाजा सकता है। युधिष्ठिर मीमांसकने वैयाकरण गार्ग्य तथा निरुक्तकार गार्ग्य दोनोंको एकही माना है एवं उनकासमय ५५०० ई. पू. निर्धारित किया है। आधुनिक विचारक इस समयको सम्यक् नहीं मानते।३६ पाणिनि एवं यास्क द्वारा इनके मतका उल्लेख होनेके कारण इन दोनोंसे गार्ग्य अवश्य प्राचीन हैं। पुनः धन्वन्तरिके शिष्योंमें गार्ग्य एवं गालवके उल्लेखके आधार पर गाये यास्कसे लगभग ४०० वर्ष प्राचीन अवश्य लगते हैं। यास्कका समय ७५० ई.पू. है तो इनका समय ११५० ई.पू. मानाजा सकता है। ये शाकटायन तथा औदुम्वरायणसे भी प्राचीन हैं।
रचनाएं :- गार्यकी रचनाओंके संबंधमें निम्नलिखित संभावनाएं उपस्थित हैं
(१) निरुक्त- यास्कद्वारा गायेके सिद्धान्तोंके उल्लेख से पता चलता है कि इनका स्वतंत्र निरुक्त ग्रन्थ होगा जो भाषा वैज्ञानिक तथ्योंसे युक्त होगा।
५९ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क