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पंचम वर्ण माना गया है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र इन चार वर्गों के अतिरिक्त एक पंचम वर्ण निषाद है। परिणामत: सबोंके समुदायको पंचजन कहते हैं। ऋषि शब्दके निर्वचनमें इनका विचार है कि उन्होंने स्तोमोंका दर्शन किया अत: ऋ दर्शने धातुसे ऋषि माना जायगा।३ कुत्स शब्दके निर्वचनमें औपमन्यव स्तोमोंके कर्ता ऋषिको ही कुत्स मानते हैं-'कर्तास्तोमानित्यौपमन्यव : '१४। यज्ञ शब्दके निर्वचनमें
औपमन्यव का मत है कि यज्ञमें कृष्णाजिन बहुत विछाये जाते हैं। इसलिए इसे यज्ञ कहते हैं। अथवा इसे यजुःमन्त्र सफलताको प्राप्त कराते हैं. वहुकृष्णाजिन इत्यौपमन्यवः । यजूंष्येनं नयन्तीतिवा। काण शब्दके संबंधमें इनका विचार है-'काणो विक्रान्त दर्शन:१५ अर्थात् विक्रान्त दर्शन वाला काण कहलाता है। यहां अविक्रान्त दर्शन एवं विक्रान्त दर्शन दोनों ही विग्रह संभावित है। विक्रान्तं विगतं दर्शनं लोचनं यस्य स:-इसके अनुसार एक नेत्र वाला काण कहलाता है। अविक्रान्तमपगतं दर्शनमवलोकनं यस्य सः इसके अनुसार अपगत अवलोकन वाला काण कहलाएगा। क्रम् +घञ्-काम: काण:। विकट शब्दके संबंधमें-विकट: विक्रान्तगति: इत्यौपमन्यव :३६ विक्रान्त गति होनेसे विकट कहलाता है। इन्द्र शब्दके संबंधमें-'इदं दर्शनादित्यौपमन्यव : '१६ इस इन्द्रने सब कुछ देखा है अतः इन्द्र कहलाता है। 'इन्दते वैश्वर्यकर्मणः। इन्दञ्छत्रूणां दारयिता वा द्रावयिता वा आदरयिता च यज्वनाम्। ऐश्वर्यार्थक इदि धातु से, इन्द पूर्वपद तथा गत्यर्थक छ या विदारणार्थक दृ धातु उत्तरपद हैं। इन्द्र शत्रुओं को विदारण करता है तथा यजनशील लोगों को आदर करता है। काक शब्दके निर्वचनमेंकाकोऽपकालयितव्यो भवति१७ अर्थात् काक निकालने योग्य है। नि:सारणार्थक काल धातुसे काक शब्दको निष्पन्न माना है।
अत: औपमन्यवके निर्वचन सम्बन्धी सिद्धान्तके विषयमें निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि निर्वचनकी तीन वृत्तियां इन्हें मान्य हैं। महाप्राणीकरण एवं मूर्धन्यीकरणके सिद्धांतको स्वीकार करते हैं। काकके निर्वचनसे स्पष्ट है किये आख्यातज सिद्धान्त के पूर्ण समर्थक हैं। इनके निर्वचनोंका संबंध याज्ञिक अर्थसे अधिक है। यज्ञ विशेषज्ञ के रूपमें भी इन्हें माना जा सकता है। (ग) औदुम्बरायण
उदुम्बरस्यापत्यमौदुम्बरः, औदुम्बरस्यापत्यमौदुम्बरायण :१८ इस विग्रह के अनुसार इनके पिता का हार औदुम्बर तथा इनके पितामहका नाम उदुम्बर था। यास्कने इनके
५६ : व्युत्पत्ति विज्ञ- - - -
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