Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ १. गा. ८ भिक्षुगुणप्रतिपादनम इत्यादि । वास्तुविद्या-मासादिनिर्माणे शुभाशुभकथनम् , अङ्गविकार-शिरःस्फुरणादि-शुभाशुभकथनम् । तथा-परस्य विजयम्-स्वरस्य-पक्ष्यादिशब्दम्य विजया शुभाशुभकथनम् । एता विद्या सन्ति । य एताभिर्विद्याभिन जीवति जीविका न करोति, स भिक्षुरुज्यते ॥७॥
तयामृलम्-मंत मूल विविह विजेचिंत, वमण-विरेयण-धूम-नेत्त-सिणाणं।
आउरे सरंण तिगिच्छिय, तं परिन्नीय परिव्वैए से भिक्खू ॥८॥ छाया-मन्त्र मूल विविधा वैधचिन्ता, बमन-विरेचन-धूम-नेत्र-स्नानम् ।
आतुरे स्मरण चिकिन्सित च, तत्परिज्ञाय परिप्रजेत् म भिक्षु. ॥८॥
लठया निमित्तज्ञान है, लवण-लक्षण, गज, घोडा तथा स्त्री पुम्पो आदि को लक्षणों को देखकर उनका शुभाशुभ कथन करना । सातमा निमित्तज्ञान है (दण्डवत्युविन-दण्टवास्तुविद्याम्) दडके एक पर्व अथवा दो पर्व देवकर उसके भले बुरे का कथन करना ग्व प्रीसाद आदि की रचना देवकर उसका शुभाशुभ का कथन करना (अगवयारअगविकार) अगो के फरकने आदि से शुभाशुभ का कहना (सरस्त विजय -स्वरस्य विजयः) पक्षी आदि के शब्दो द्वारा शुभाशुभ जानना ये सब निमित्तज्ञान हैं । इनका नाम निमित्तविद्या भी है (जे विजाहिं ण जीवई स भिक्ख-ये विद्याभिन जीवति स भिक्षुः) इन विद्याओ द्वारा जो मुनिजीविका नहीं करता है उसका नाम भिक्षु है। अर्थात् इन आठो अग मे कहे हुवे निमित्तो को नहीं कहता वही साधु है ॥७॥
निभित्तज्ञान के लक्षण-लक्षण हाथी घोडा मने स्त्री पुरुषो महिना લક્ષણેને જોઈને એના શુભાશુભનું કથન કરવું સાતમુ નિમિત્તજ્ઞાન છે તે વધુ विज-दडवास्तुविद्याम् । वास्तु विधा- उना मे ५ मथवा मे ५ धन તેના સારાબુરાનું કથન કરવુ તેમ જ મહાન આદિની રચના જોઈને તેના શુભા शुभनु ४थन ४२५ अगवियार-अङ्गविकारम् भगोनु ३२४ माहिया शुभाशुभ ४३ सरस्स विजय-स्वरस्य विजय पक्षी माहिना शहादा। शुभाशुभएy मा सघा निमित्तज्ञान छ मेनु नाम निभित्तविधा पY छ जे विजाहिण जीबई स भिक्खू-ये विद्याभिर्न जीवति स भिक्षुः मा विद्या बारा २ मुनि આજીવિકા ચલાવતા નથી એનું નામ ભિક્ષુ છે અર્થાત્ - આ આઠે અગોમાં કહેલ નિમિત્તોને કરતા નથી તેજ સાધુ છે i૭