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श्री संवेगरंगशाला शुक्र (सहस्रार) आदि देवलोक के दैवी सुखों का अनुभव करके यावत् सर्वार्थ सिद्ध में सर्वोत्कृष्ट सुख भोगकर, यहाँ मनुष्य जन्म को प्राप्त कर दीक्षा अंगीकार की, और निखध आराधना की विधि यथार्थ रूप पालन करने लगा, और मोहरूपी योद्धाओं का पराभव करके संसार का निमित्त भूत कर्मों के समूह को खत्म कर दिया, इससे सुर-असुरों से महिमा गाने वाले हिम समान उज्जवल शिवपुर को प्राप्त किया है। इस तरह क्षुल्लक मुनि के समान दीक्षा लेने वाले
और दक्ष भी प्रमादी साधु आराधना विधि पालन नहीं कर सकते हैं। और इस क्षुल्लक से समान पालन करना तथा जो प्रत्येक जन्म में श्रेष्ठ साधू जीवन पालन करता है वह लीला मात्र से आराधना द्वारा विजयलक्ष्मी को प्राप्त करता है। इस प्रकार मरूदेवी आदि दृष्टान्त से प्रमाद नहीं करना चाहिए, परन्तु निष्कलंक दीक्षा का पालन यह मृत्यु समय की आराधना का कारण होने से उसका पालन नित्यमेव करना चाहिए।
यह सुनकर शिष्य ने कहा कि-'पूर्व में साधु जीवन की साधना नहीं करने पर भी निश्चय से मरूदेवी माता सिद्ध हए हैं' ऐसा कहा है उसमें क्या परमार्थ है ? गुरु महाराज ने कहा-पूर्व में उसका चित्त धर्म वासित न हो, ऐसा कोई जीव यद्यपि मरणांत आराधना करे, तो भी क्षात्र विधि के दृष्टान्त से वह सर्व के लिए प्रमाणभूत नहीं है। वह दृष्टान्त इस प्रकार :-जैसे किसी पुरुष ने कील गाड़ने के लिए जमीन में खड्ढा खोदा कथमपि दैव योग से रत्न का खजाना मिल गया, तो क्या उसके बिना अन्य किसी भी कारण से किसी स्थान पर जमीन पर खड्डा खोदने से खजाना मिल जायेगा ? अर्थात् नहीं मिल सकता है। अतः सर्व विषय में एकान्त नहीं है । यद्यपि वह मरूदेवी पूर्व जन्म में कुशल धर्म के अभ्यामी नहीं थे फिर भी कथंचित् सिद्ध हो गये हैं, तो क्या इसी तरह सर्वजन सिद्ध हो जायेंगे? ऐसा नहीं होगा। इसलिए मरूदेवी आदि के दृष्टान्त से प्रमाद नहीं करना। जो मूल प्रतिज्ञा-नियमों का पालन करते और क्रमशः बढ़ते शुभ भावना वाला हो वह अन्तिम आराधना कर सकता है। ऐसा समझना चाहिये।
विधिपूर्वक परिपूर्ण आराधना करने की इच्छा वाले मुनि अथवा श्रावक को रोगी के समान सर्वप्रथम आत्मा को परिकमित अर्थात दृढ़ अभ्यासी बनना चाहिए, इस कारण से विशेष क्रियार्थियों के लिए पहले कहा हुआ परिकर्म विधान नाम का मुख्य द्वार बतलाया है। उसमें, उस द्वार के साथ में सम्बन्ध रखने वाला, उसके समान गुण वाला जो पन्द्रह अन्तर्गत द्वार हैं, उसे क्रमशः