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श्री संवैगरंगशाला
२५६ शास्त्र मर्यादा अनुसार ऋद्धि, रस और शांता इन तीनों गारव रहित विहार कर भव्य आत्माओं को प्रतिबोध करके, फिर आराधना करने के लिये यदि चाहे तो उत्तरोत्तर बढ़ते प्रशस्त परिणाम रूप संवेग वाले वे आचार्य (सूरि) प्रथम बहत साधुओं के रहने योग्य बड़े क्षेत्र में जाए। उसके बाद उस नगर, खेट, कर्वट आदि स्थानों में विचरते अपने साधु गण को बुलाकर उनके समक्ष इस प्रकार अपना अभिप्राय बतलावे। उसके पश्चात् पक्षपात बिना सम्यग् बुद्धि से प्रथम निश्चय अपने ही गच्छ में अथवा अन्य गच्छ में वह आचार्य पद के योग्य पुरुष रत्न की बुद्धि से खोज करे । वह इस प्रकार है :
आचार्य की योग्यता :-आर्य देश में जन्म लेने वाला, उत्तम जाति रूप, कुल आदि पूण्य सम्पत्ति से युक्त हो, सर्व कलाओं में कुशल, लोक व्यवहार में अच्छी तरह कुशल हो, स्वभाव से सुन्दर आचरण वाला, स्वभाव से ही गुण के अभ्यास में सदा तल्लीन रहने वाला, प्रकृति से ही नम्र स्वभाव वाला, प्रकृति से ही लोगों के अनुराग का पात्र, प्रकृति से ही अति प्रसन्न चित्त वाला, प्रकृति से ही प्रिय भाषा बोलने में अग्रसर, प्रकृति से ही अति प्रशान्त आकृति वाला, और इससे ही प्रकृति गम्भीर, प्रकृति से ही अति उदार आचार वाला, प्रकृति से ही महापुरुषों के आचार में चित्त की प्रीति वाला, और प्रकृति से ही निष्पाप विद्या को प्राप्त करने में उद्यमी चित्त वाला, कल्याण-धर्म मित्रों की मित्रता करने में अग्रसर, निन्दा को नहीं करने वाला, माया रहित, मजबूत शरीर वाला, बुद्धि-बल वाला, धार्मिक लोगों के मान्य, अनेक देशों में विचरण किया हो, और सर्व देशों की भाषा के जानकार, व्यवहार में बहुत अनुभवी, देश परदेश के विविध वृत्तान्तों को सुने हो, दीर्घदृष्टा, अक्षुद्र, दाक्षिण्य के महा समुद्र, अति लज्जालु, वृद्धों का अनुकरण करने वाला, विनीत और सर्व विषय में अति स्थिर लक्षण वाला, सरलता से प्रसन्न कर सके ऐसे गुणों का पक्षपाती, देश-काल-भाव के जानकार, परहित करने में प्रीति वाला, विशेषज्ञ और पाप से अति भीरू, सद्गुरू ने जिसे विधिपूर्वक दीक्षा दी हो, उसके बाद अनुक्रम से स्व-पर शास्त्रों के विधानों के अभ्यासी, चिर-परिचित सूत्र अर्थ वाला, उस-उस युग में आगम घरों में मुख्य शास्त्रानुसारी ज्ञान वाला, तत्त्वों को समझाने की विशिष्ट बुद्धि वाला, क्षमावान्, सत्क्रिया को करने में रक्त, संवेगी लब्धिमान्, संसार की असारता को अच्छी तरह समझने वाला, और उससे विरागी चित्त वाला, और सम्यग् ज्ञानादि गुणों को प्ररूपक और स्वयं पालक, शिष्यादि तथा गच्छ समुदाय के उपयोगी उपकरणादि का संग्रह करने वाला अप्रमादी, ज्ञानी तपस्वी गीतार्थ, कथा करने में कुशल तथा परलोक का हित करने वाला, गुणों