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श्री संवेगरंगशाला
कचरा गिराने लगी, इससे दूसरे स्थान पर बैठे, वहाँ भी उसी तरह कचरा डाला, अतः क्रोधी बने धर्मरूचि मुनि ने भी 'यह नन्द के समान कौन है ?' ऐसा कहा और दृष्टि ज्वाला से जला दिया, तब वह नदी प्रवाह में रुके हुए गंगा किनारे हँस रूप उत्पन्न हुआ, मुनि ने भी वहाँ से गाँव-गाँव विचरते भाग्य योग से उस प्रदेश से जाते हुए किसी तरह हँस पक्षी को देखा, उसके बाद क्रोधातुर होकर वह जल भरी पांखों से मुनि को जल के छींटे डालने लगा, इससे प्रचण्ड क्रोध से साधु ने उसे जला दिया और वहाँ से मरकर अंजन नामक बड़े पर्वत में वह सिंह उत्पन्न हआ। फिर एक साथ कई साधू के साथ चलते उसी प्रदेश से जाते किसी तरह उनका साथ छोड़कर एकाकी आगे बढ़े। उस साधु को सिंह ने देखा, इससे साधु मारने के लिये आते सिंह को मुनि ने जला दिया। तब वह मरकर बनारसी नगर में ब्राह्मण का पुत्र हुआ और साधु भी किसी भाग्ययोग से उसी नगर में पधारे । वहाँ भिक्षार्थ नगर में घूमते उनको बटुक ब्राह्मण ने देखा और धूल फेंकना इत्यादि उपसर्ग करने लगा, वहाँ भी पूर्व के समान मुनि ने उसे जला दिया और उसी नगर में वह राजा उत्पन्न हुआ, मुनि भी चिरकाल अन्यत्र विहार करने लगे। फिर राज्य लक्ष्मी को भोगते राजा का अपना पूर्व जन्म का चिन्तन करने से जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, इससे भयभीत बना वह विचार करने लगा कि-यदि अब वह मुझे मारेगा तो महान् अनर्थ होगा और राज्य का विशिष्ट सुख से मैं दूर हो जाऊंगा। इसलिए किसी तरह मैं उस मुनि की जानकारी करूँ और शीघ्र उनसे क्षमा याचना करू । इसलिए उसकी जानकारी के लिए उस राजा ने डेढ़ (१३) श्लोक से पूर्वभव का वृत्तान्त रचकर घर के बाहर लगाया, वह इस प्रकार ।
___ "गंगा में नन्द नाविक, सभा में कोकिल, गंगा के किनारे हँस, अंजन पर्वत में सिंह, और वाराणसी में बटुक ब्राह्मण होकर वही राजा रूप उत्पन्न हुआ है।" फिर इस तरह की उद्घोषणा करवाई कि-जो कोई इसे पूर्ण करेगा उसे राजा आधा राज्य देगा। इससे नगर के सभी नागरिक अपनी मति रूप वैभव के अनुरूप उत्तरार्द्ध श्लोक की रचना कर राजा को सुनाते थे, परन्तु इससे राजा को विश्वास नहीं होता था। एक दिन धर्मरूचि दीर्घकाल तक अन्यत्र विहार कर वहाँ आये और बाग में रुके, वहाँ बाग में माली “गंगा में नन्द नाविक" इत्यादि पद को बार-बार बोलते सुना। मुनि ने कहा कि हे भद्र! तू इस पद को बार-बार क्यों बोलता है ? उसने सारा वृत्तान्त कहा, तब उसका रहस्य जानकर मुनि ने उसका अन्तिम आधा श्लोक इस प्रकार