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श्री संवेगरंगशाला उसकी दोनों आँखें निकाल दी और तिरस्कार करके उसी समय उसे नगर से निकाल दिया। बाद में भिक्षार्थ घूमते, लोगों से तिरस्कार प्राप्त करते और दुःख से पीड़ित होते, वह 'हाय ! मैंने यह क्या किया ?' इस तरह अपने आपका शोक करने लगा। इस तरह हे सुन्दर ! अविनय जिसमें मुख्य है और अन्याय का भण्डार रूप माया मृषा को छोड़कर तू परम प्रधान मन की समाधि को स्वीकार कर। इस तरह सत्तरहवाँ पाप स्थानक कहा है । अब मिथ्या दर्शन शल्य नाम का अट्ठारहवाँ पाप स्थानक भी कहता हूँ।
१८. मिथ्या दर्शन शल्य पाप स्थानक द्वार :-दृष्टि की विपरीतता रूप एक साथ दो चन्द्र के दर्शन के समान जो मिथ्या, अर्थात् विपरीत दर्शन उसे यहां मिथ्या दर्शन कहा है और वह शल्य के समान मुश्किल से नाश हो, दुःखों को देने वाला होने से उसे 'मिथ्या दर्शन शल्य' उपचार किया है । यह शल्य दो प्रकार का है, प्रथम द्रव्य और दूसरा भाव से । उसमें द्रव्य शल्य भाला, तलवार आदि शस्त्र और भाव शल्य मिथ्या दर्शन जानना। शल्य के समान हृदय में रहा हुआ, सभी दुःखों का कारण मिथ्या दर्शन शल्य भयंकर विपाक वाला है। प्रथम द्रव्य शल्य निश्चय एक को ही दुःख का कारण है और दूसरा जो भाव शल्य है वह स्व पर उभय को भी दुःख का कारण बनता है । जैसे राहु की प्रभा का समूह केवल सूर्य के ही प्रकाश को नाश नहीं करता, परन्तु अन्धकारत्व से समग्र जगत के प्रकाश को भी नाश करता है, इस तरह फैलता हुआ भाव शल्य भी एक उस आत्मा को ही नहीं परन्तु समग्र जगत के प्रकाश (सम्यक्त्व) का भी नाश करता है । इस प्रकार होने से मिथ्या दर्शन रूपी राहु की प्रभा के समूह उसका सम्यक्त्व का प्रकाश नाश होता है और भाव अन्धकार के समूह को करने वाला मिथ्या दर्शन से जो मुरझा जाता है वह मूढ़ात्मा किसी भी पुरुष रूपी सूर्य में और अपने जीवन में भी वह मिथ्यात्व रूप अन्धकार को ही बढ़ाता है, और परम्परा से फैलता प्रमाण रहित अमर्यादित वह अन्धकार से व्याप्त है, इसलिए अन्धकारमय पर्वत की गुफा के समान प्रकाश रहित इस जगत में संसारवास से उद्विग्न और पदार्थों को सम्यक् जानने की इच्छा वाला भी जीवों को सम्यक्त्व का प्रकाश सुखपूर्वक किस तरह प्राप्त कर सकता है ?
__ और यह मिथ्या दर्शन शल्य दिगमोह है, आँखों के ऊपर बाँधी हुई पट्टी है यही जन्मांध जीवन है, यही आँखों को नाश करने का उपाय है, अथवा वह इस जगत को शीघ्र हमेशा परिभ्रमण करने वाला चक्र है। अथवा वह इस समुद्र की ओर दक्षिण में जाने वाले की इच्छा वाले का हिमवंत की ओर उत्तर में गमन है या पीलिया के रोगी का वह मिथ्या ज्ञान है अथवा वह बुद्धि का