________________
श्री संवेगरंगशाला
४७१
इस तरह मदोन्मत्त हाथियों की सूंड से श्रेष्ठ रथों का समूह नष्ट हो रहे हैं, के समूह को चूर होने से घोड़े जहाँ तहाँ भागते जन समूह को गिरा रहे हैं, जन समूह गिरने से मार्ग दुर्गम बन गया है, इससे व्याकुल शूरवीर सुभट इधर-उधर भाग रहे हैं, शूरवीर सुभटों का परस्पर लड़ने से सेना समूह वहाँ व्याकुल हो रही है और सेना के लोगों के पुकार शब्द से कायर लोगों का समूह वहाँ भाग रहा है, इस तरह मारे गये योद्धायुक्त तुम्हारी सेना को 'शत्रु ने यम के घर पहुँचा दिया है ।
यह सुनकर ललाट पर भयंकर भ्रकुटी चढ़ाकर राजा ने प्रस्थान करने वाली महा आवाज करने वाली भेरी को बजवाई। फिर उस भेरी का बादल के समूह के आवाज समान महान् व्यापक नाद से प्रस्थान का कारण जानकर शीघ्र चतुरंग सेना उपस्थित हुई । तब अति कुपित होकर कनकरथ राजा उस सेना के सहित शीघ्र प्रस्थान करके शत्रु महेन्द्र सिंह राजा की सीमा में पहुँच गया । फिर उसे आया जानकर अत्यन्त उत्साह को धारण करते महेन्द्र सिंह ने उसके साथ अति जोर से युद्ध करना प्रारम्भ किया । फिर चक्र और बाणों के समूह को फैंकते, तेज से उग्र सुभट उछल रहे थे, हाथ में पहला हुआ वीरत्व सूचक वीरवलय में जुड़े हुये मणि की कान्ति से मानो कुपितयम नेत्रों से कटाक्ष फेंकता हो, इस तरह अवरोध करता अर्थात् शत्रु को रोकते मन और पवन समान वेग वाले घोड़े के समूह वाला महेन्द्र सिंह शत्रु कनक राजा की सेना के साथ युद्ध करने लगा। फिर जो रण भूमि में भागे हुए दण्ड रहित छत्र समूह मानो भोजन करने के बाद फेंका हुआ थाल न हो ऐसा दिखते थे और तलवार से शत्रुओं के गले काट देने वाले, देवों को प्रसन्न करने वाले और अपने मालिक के करने वाले उत्तम बलवान योद्धा वहाँ कृतकृत्य होने रहे थे । वहाँ रुधिर से भोगे मस्तकों से अलंकृत पृथ्वी रची दिवार न हो ? और जमीन दो विभाग के ऊपर हुए अंजत पर्वन के शिखर न हों ? इस तरह दिखते थे । इस प्रकार बहुत लोगों का नाश करने वाला युद्ध जब हुआ तब मिथिला के राजा ने दुर्जय अपने हाथी के ऊपर बैठकर रणभूमि में शत्रु के सन्मुख खड़ा रहा । इस अवसर पर मन्त्रियों ने कहा कि - हे देव ! युद्ध से रुक जाओ । शत्रु के मनोरथ को सफल न करो । स्वशक्ति का विचार करो । यह उत्तर दिशा का राजा युद्ध में दृढ़ अभ्यासी है देव सहायता करते हैं महान् पक्ष वाला और महा सात्त्विक है, इस तरह अभी ही गुप्तचरों ने हमसे कहा है, इसलिए एक क्षण
युद्ध क्रिया से दुष्ट व्यंतरादि कार्य में देह का भी त्याग से हर्षपूर्वक मानो नाच मानो लाल कमलों से गिरे हाथी मानो टूटे