________________
श्री संवेग रंगशाला
५३५
जन्म का स्मरण हुआ । किसी समय उसके पुत्र ने उसके ही पुण्य के लिए बड़े आडम्बर से वार्षिक मृत्यु तिथि के दिन मनाने का प्रारम्भ किया और स्वजन, ब्राह्मण, सन्यासी आदि को निमन्त्रण दिया, फिर उसके निमित्त भोजन बनाने वाली ने मांस पकवाया और उसे बिल्ली आदि ने नाश किया, अतः घर के मालिक से डरी हुई उसने दूसरा मांस नहीं मिलने से उसी सूअर को मारकर मांस पकाया । वहाँ से मरकर वह पुनः उसी घर में सर्प हुआ और भोजन बनाने वाली को देखकर मृत्यु के महाभय के कारण आर्त्त ध्यान करते उसे पूर्व जन्म का स्मरण हुआ । भोजन बनाने वाली उस स्त्री ने भी उसे देखकर कोलाहल मचाया, लोग एकत्रित हुए और उस सर्प को मार दिया । वह सर्प मरकर पुनः अपने पुत्र का ही पुत्र रूप में जन्म लिया और पूर्व जन्म का स्मरण करके इस तरह विचार करने लगा कि - मैं अपने पुत्र को पिता और पुत्रवधू को माता कैसे कहूँ ? यह संकल्प करके वह मौनपूर्वक रहने लगा । समय जाने के बाद उस कुमार ने यौवन अवस्था प्राप्त की । उस समय विशिष्ट ज्ञानी धर्मस्थ नाम के आचार्य उसी नगर के उद्यान में पधारे और ज्ञान के प्रकाश से देखा कि - यहाँ कौन प्रतिबोध होगा ? उसके बाद उन्होंने उस मौनव्रती को ही योग्य जाना, इससे दो साधुओं को उसके पूर्व जन्म के सम्बन्ध वाला श्लोक सिखाकर प्रतिबोध करने के लिए उसके पास भेजा, और उन्होंने वहाँ जाकर इस प्रकार से श्लोक उच्चारण किया :--
" तापस किमिणा मोणव्वएण पडिवज्ज जाणिउं धम्मं । मरिऊण सूयरोरग, जाओ पुत्रस्स पुत्रोत्ति ॥ "
अर्थात् - हे तापस ! इस मौनव्रत से क्या लाभ है ? तू मरकर सूअर, सर्प और पुत्र का पुत्र हुआ है, ऐसा जाकर धर्म को स्वीकार करो। फिर अपना पूर्व जन्म का वृत्तान्त सुनकर प्रतिबोध प्राप्त कर उसने उसी समय आचार्य श्री के पास जाकर श्री तीर्थंकर परमात्मा का धर्म स्वीकार किया । इस विषय पर अब अधिक क्या कहें ? यदि जीव धर्म को नहीं करेगा तो संसार में कठोर लाखों दुःखों को प्राप्त करता है और प्राप्त करेगा । इसलिए हे क्षपक मुनि ! महादुःख का हेतुभूत संसार के सद्भूत पदार्थों की भावना में इस तरह उद्यम कर कि जो प्रस्तुत आराधना को लीलामात्र से साधन कर सके । यह संसार वस्तुओं के अनित्यता से अलभ्य अशरण रूप है, इसी कारण से जीवों का एकत्व है । इसलिए प्रति समय बढ़ते संवेग वाले तू ममता को छोड़कर हृदय में तत्त्व को धारण करके एकत्व भावना का चिन्तन कर । वह इस प्रकार :