Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Padmvijay
Publisher: NIrgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 645
________________ ६२२ श्री संवेगरंगशाला (जीवन) नामक ठाकुर (राज या राजपुत्र) हुआ, उसने स्वभाव से ही ऐरावणह के समान भद्रिक सदा वीतराग का सत्कार, भक्ति करने वाला आचार से दानेश्वरी वर्धमान ठाकुर नाम का पुत्र था । उसे नदीनाथ समुद्र को जिसका आगमन प्रिय है वह गंगा समान पति को जिसका आगम प्रिय है उसे अत्यन्त मनोहर आचार वाली यशोदेवी नामक उत्तम पत्नी थी । उन दोनों को चन्द्र समान प्रिय और सदा विश्व में हर्ष वृद्धि का कारण तथा अभ्युदय के लिए गौरव को प्राप्त करने वाला पण्डितों में मुख्य, प्रशंसा पात्र पार्श्व ठाकुर नामक पुत्र हुआ। उस कुमार ने पल्ली में बनाया हुआ भक्ति के अव्यक्त शब्द से गूंजता सुवर्णमय कलश वाला श्री महावीर प्रभु का चौमुख मन्दिर हिमवंत पर्वत की प्रकाश वाली औषधियों से युक्त ऊँचे शिखर के समान शोभता है । उस मन्दिर के अन्दर सुन्दर चरण, जंघा, कटिभाग, गरदन और मुख के आभूषण से अनेक प्रकार की विलास करने वाली पुतलियों के समूह को अपने मुकुट समान धारण करता है । उस पार्श्व ठाकुर की महादेव को प्रिय गोरी के समान प्रिय प्रशस्त आचार की भूमि सदृश स्वजन वत्सला उत्तम धंधिका नाम की पत्नी थी । उन दोनों के तुच्छ जीभ रूपी लता वाले मनुष्य के मान को विस्तार करने में चतुर लोकपाल समान पाँच पुत्र हुये जो श्री जैन पूजा, मुनिदान और नीति के पालन से प्रगट हुई शरदचन्द्र तथा मोगर के पुष्पों के समान उज्जवल और निर्मल कीर्ति आज भी विस्तृत है । उस पाँच में प्रथम नन्नुक महत्तम ठाकुर, दूसरा बुद्धिमान लक्ष्मण ठाकुर और तीसरा इन्द्र के समान सत्यवादी पुण्यशाली आनन्द महत्तम ठाकुर था । उसको वाणी रस से मिसरी सदृश विस्तार वाली है, चित्तवृत्ति अमृत की तुलना करने वाली है और उसका सुन्दर आचरण शिष्टजनों के नेत्रों को उत्तम कूर्पर के अंजन के समान हमेशा शीतल करता है । अर्थात् सर्व अंग सुन्दर थे । इसके अतिरिक्त चौथा पुत्र धनपाल ठाकुर और पांचवाँ पुत्र नागदेव ठाकुर था और उसके ऊपर शील से शोभने वाली श्रीदेवी नाम से एक पुत्री ने जन्म लिया था । इन पाँचों पुत्रों में आनन्द महत्तम को क्रमशः दो पत्नियाँ हुईं, जैसे पृथ्वी धान्य और पर्वत रूप सम्पत्ति को धारण करती है, वैसे प्रशस्त शियल की सम्पत्ति को धारण करने वाली विजयमती थी। दूसरी - भिल्लमाल कुलरूपी आकाश चन्द्र समान शोभित सौहिक नामक श्रावक था उसे ज्योत्सना समान सम्यक् नीति की भूमिका लखुका ( लखी) नामक पत्नी थी । उनको सौम्य कान्ति वाला छड्डक नाम से बड़ा पुत्र और मति तथा बुद्धि सदृश राजीनी और सीलुका दो पुत्रियाँ थीं । उसमें विनय वाली वह राजीनी को विधिपूर्वक मन्त्री 1

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