Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Padmvijay
Publisher: NIrgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 647
________________ ६२४ अनुवादक प्रशस्ति 12 इस प्रकार श्री संवेगरंगशाला नामक आराधना विधि का श्री श्रमण भगवान वर्धमान (महावीर ) स्वामी की शासन परम्परा के ७३वें पट्ट पर संवेगी शाखा में तपागच्छाधिपति परम पूज्य प्रातः स्मरणीय न्यायाभ्यो निधि पंजाब देशोद्वारक आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजयानन्द सूरी आत्माराम) जी महाराज हो गये । उनके पट्टधर युगदृष्टा भारत दिवाकर आचार्य देव श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज हुये, उनके अनुपम पट्टधर मरुधरोद्धारक विजय ललित सूरीश्वर जी महाराज के पट्टधर महातपस्वी ज्योतिष्मार्तण्ड आचार्य देव श्रीमद् विजय पूर्णानन्द सूरीश्वर जी के पट्टालंकार कौशाम्बी कंपिला इलाहाबाद आदि तीर्थोंद्धारक, शासन दीपक, महातपस्वी उत्तर प्रदेशोद्वारक आचार्य देव श्रीमद् विजय प्रकाशचन्द्र सूरीश्वर जी महाराज के शिष्य पन्यास पद्म विजय ने हिन्दी अनुवाद विक्रम सम्वत् २०३८ प्रथम आश्विन शुद्धि ३ दिनांक २० - ६ - ८२ सोमवार उत्तर प्रदेश में मेरठ सदर के अन्दर श्री सुमतिनाथ भगवान के मंदिर नजदीक उपाश्रय में पूर्ण किया । ॥ इति श्री संवेगरंगशाला समाप्त ॥ श्री संवेगरंगशाला श्रोतु वाचकयो शुभ भूयात क

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