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श्री संवेगरंगशाला
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नरक में काया के कारण से तू शीत, उष्ण आदि अनेक प्रकार की अति कठोर वेदनाएँ अनेक बार प्राप्त की हैं। यदि पानी के लोट समान लोहे के गोले को कोई उष्ण स्पर्श वाली नरक में फैंके तो निमेष मात्र में उस नरक को जमीन में पहुँचते पहले बीच में गल जाता है ऐसी तेज गरमी नरक में होती है । और उसी तरह उतना ही प्रमाण वाला जलते लोहे के गोले को यदि कोई शीत स्पर्श वालो नरक में फैंके तो वह भी वहाँ नरक भूमि के स्पर्श बिना बीच में ही निमेष मात्र में सड़कर बिखर जाता है ऐसी अतीव ठण्डी में तू दुःखी हुआ और नरक में परमाधामी देव ने तुझे शूली, कूट शाल्यमली वृक्ष, वैतरणी नदी, उष्ण रेती और असिवन से दुःखी हुआ तथा लोहे के जलते अंगार खिलाते तूने जो दुःखों को भोगा, सब्जियों के समान पकाया, पारा के समान गलाया, मांस के टुकड़े के समान टुकड़े-टुकड़े काटा, अथवा चूर्ण के समान चूर्ण किया, तथा गरमागरम तेल की कढ़ाई में तला, कुम्भी में पकाया, भाले से भेदन किया, करवत से चीरा, उसका विचार कर ।
तियंच जन्म में :- भूख, प्यास, ताप, ठण्डी सहन की, शूली में चढ़ाया गया, अंकुश में रहा, नपुंसक बनाया गया, दमन करना इत्यादि तथा मार बंधन और मरण से उत्पन्न हुए वे कठोर दुःखों का तू विचार कर ।
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मनुष्य जन्म में भी प्रियजनों का विरह, अप्रिय का संगम, धन का नाश, स्त्री से पराभव, तथा दरिद्रता का उपद्रव इत्यादि होने से जो दुःख भोगा, और छेदन, मुण्डन, ताड़न, बुखार, रोग, वियोग, शोक, संताप आदि शारीरिक, मानसिक और एक साथ वे दोनों प्रकार के दुःखों को भोगा उसका विचार
कर ।
देव जन्म में :- च्यवन की चिन्ता और वियोग से पीड़ित, देवों के भवों में भी इन्द्रादि की आज्ञा का बलात्कार, पराभव, इर्ष्या, द्वेष आदि मानसिक दुःखों का विचार कर । और सहसा च्यवन के चिन्हों को जानकर दुःखी होते, विरह के पीड़ा से चपल नेत्र वाला देव भी देव की सम्पत्ति को देखते चिन्ता करता है कि - सुगन्धी चन्दनादि से व्याप्त, नित्य प्रकाश वाले देव लोक में रहकर अब मैं दुर्गन्धमय तथा महा अन्धकार भरे गर्भाशय में किस तरह रहूँगा? और दुर्गन्धी मल, रुधिर, रस-धातु आदि अशुचिमय गर्भ में रहकर संकोचमय प्रत्येक अंग वाला कटिभाग के सांकड़ी योनि में से किस तरह निकलूंगा ? तथा नेत्रों के अमृत की वृष्टि तुल्य अप्सराओं के मुख चन्द्र को देखकर हा ! शीघ्र माया से गर्जना करती मनुष्य स्त्री के मुख को किस तरह देखूंगा ? एवं सुकुमार और सुगन्धी मनोहर देह वाली देवियों को भोगकर