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श्रो संवेगरंगशाला
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जल अपने आधीन होते हुए भी उसे पिये बिना अखण्ड समाधि से स्वर्ग को गये । एक साथ में मच्छरों ने शरीर में से रुधिर पीने पर उन मच्छरों को रोके बिना सम्यक सहन करते सुमन भद्र मुनि स्वर्ग गये। महर्षि मेतारज सोनी द्वारा मस्तक पर गीला चमड़ा कसकर बांध दिया, आँखें बाहर निकल गईं फिर भी अपूर्व समाधि के द्वारा अन्तकृत केवली होकर मोक्ष गये। तीन जगत में अद्वितीय मल्ल-अनन्त बली भगवान श्री महावीर देव ने बारह वर्ष विविध उपसर्गों के समूह को सम्यग् सहन किया। भगवान सनत्कुमार ने खुजली, ज्वर, श्वास, शोष, भोजन की अरूचि, आँख में पीड़ा और पेट का दर्द ये सात वेदना सात सौ वर्ष तक सहन की। माता के वचन से पुनः चेतना-ज्ञान वैराग्य को प्राप्त करके शरीर की अति कोमलता होने से चिरकाल चारित्र को प्राप्त कर असमर्थ भी धीर भगवान अरणिक मुनि भी अग्नि तुल्य तपी हुई शीला ऊपर पादपोपगमन अनशन करके रहे और केवल एक ही मुहूर्त में सहसा शरीर को गलते हुये श्रेष्ठ समाधि में काल धर्म प्राप्त किया। हेमन्त ऋतु में रात्री में वस्त्र रहित शरीर वाले, तपस्वी सूखे शरीर वाले, नगर और पर्वत के बीच मार्ग में आस-पास काउस्सग्ग में रहे श्री भद्रबाहु सूरि के चार शिष्यों का शरीर शीत लहर से चेष्टा रहित हो गया फिर भी समाधि से सद्गति को प्राप्त किया, उनको हे सुन्दर ! क्या तूने नहीं सुना ? उस काल में कुंभकार कृत नगर में महासत्त्व वाले आराधना करते खंदक सूरि के भाग्यशाली पाँच सौ शिष्यों को दण्डकी राजा के पुरोहित पापी पालक ब्राह्मण ने कोल्हू में पीला था, फिर भी समाधि को प्राप्त किया था। क्या तूने नहीं सुना ? भद्रिक, महात्मा कालवैशिक मुनि बवासीर के रोग से तीव्र वेदना भोगते हुए विचरते मुद्गल शैल नगर में गये, वहाँ उनकी बहन ने बवासीर की औषध देने पर भी उसे दुर्गति का कारण मानकर चिकित्सा को नहीं करते, चारों आहार का त्याग करके, एकान्त प्रदेश में काउस्सग्ग में रहे और वहाँ तीव्र भूख से 'खि-खि' आवाज करती बच्चों के साथ सियारणी आकर उसका भक्षण करने पर भी आराधक बने।
तथा जितशत्रु राजा के पुत्र कुमार अवस्था में दीक्षित हुए थे। उनका नाम भद्र मुनि था। वह विहार करते शत्रु के राज्य में श्रावस्ती नगर में गये। वहाँ किसी राजपुरुषों ने जाना और पकड़कर मारकर चमड़ी छोलकर चोट में नमक भर कर दर्भ घास लपेटकर छोड़ दिया। उस समय उनको अतीव महा वेदना हुई, फिर भी उसे सम्यग् सहन करते समाधिपूर्वक ही काल धर्म प्राप्त किया। एक साथ में अनेक अति तीक्ष्ण मुख वाली चींटियाँ भगवान चिलाती पुत्र को खाने लगी, उनकी वेदना सहन करते समाधि मरण को स्वीकार किया।