Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Padmvijay
Publisher: NIrgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 610
________________ श्री संवेगरंगशाला ५८७ शत्र सेना के मल्ल के समान एक ही झपट में जीतकर इस प्रस्तुत विषय में ही यथा शक्ति पराक्रम प्रगट कर और अमूल्य इस धर्म गुणों की स्वाभाविक सुन्दरता को परभव में उसके साथ होना तथा पुनः दुर्लभता का भी विचार कर । और हे क्षपक मुनि ! तूने जो चतुर्विध श्री संघ के मध्य में महा प्रतिज्ञा की है कि 'मैं आराधना करूँगा।' उसे याद कर। ऐसा कौन कुल अभिमानी कुलिन सुभट होगा कि जो लोक में कुलीन का गर्व करके युद्ध में प्रवेश मात्र से ही शत्रु से डरकर भाग जाएँ ? ऐसा अभिमानी पूर्व में गर्व करके कौन साधु परीषह रूपी शत्रुओं के आगमन मात्र से ही खिन्न हो जाये ? जैसे प्रथम अभिमान करने वाले मानी कुलीन को रण में मर जाना अच्छा है परन्तु जिन्दगी तक लोक में अपने को कलंकित करना अच्छा नहीं है, वैसे मानी और चारित्र में उद्यमशील साधु को भी मरणा अच्छा है, परन्तु निज प्रतिज्ञा के भंग से अन्य लोगों में कलंक का सहन करना वह अच्छा नहीं है । युद्ध में से भाग जाने वाले सुभट के समान कौन सा मनुष्य अपने एक जोव के लिए पुत्र पौत्रादि सर्व को कलंकित करे ? इसलिए श्री जैन वचन के रहस्य को जानकर भी केवल द्रव्य प्राणी से जीने की इच्छा वाला तू अपने को समुदाय और समस्त संघ को भो कलंकित मत करना । और यदि अज्ञानी जीव तीव्र वेदना से व्याकुल होने पर भी संसार वर्धक अशुभ पाप में धैर्य को धारण करते हैं, तो संसार के सर्व दुःखों के क्षय के लिए आराधना करते और विराधना जन्य भावी अति तीव्र दुःख विपाक को जानते साधु धीरता कैसे न रखता ? क्या तूने यह सुना कि तिथंच होने पर शरीर संधि स्थान टूटने की पीड़ा से व्याकुल शरीर वाले भी छोटे बैलों के बछड़े कंबल संबल के अनशन की सिद्धि प्राप्त की। और तुच्छ शरीर वाले, तुच्छ बल वाले, और प्रकृति से भी तुच्छ तिथंच होने पर भी वैतरणी बन्दर ने अनशन स्वीकार किया था क्षुद्र चींटियों के द्वारा तीव्र वेदना वाला भी प्रतिबोध हुए चण्ड कौशिक सर्प ने पन्द्रह दिन का अनशन स्वीकारा था तथा कौशल की पूर्व जन्म की माता शेरनी के भव में तिर्यंच जन्म में भी भूख की पीड़ा को नहीं गिनकर इस तरह जाति स्मरण प्राप्त कर उसने अनशन स्वीकार किया। इस प्रकार यदि स्थिर समाधि वाले इन पशुओं ने भी अनशन को स्वीकार किया, तो हे सुन्दर ! पुरुषों में सिंह तू उसे क्यों स्वीकार नहीं करता? और रानी के द्वारा वैसे उपसर्ग होने पर भी सुदर्शन सेठ गृहस्थ भी मरने को तैयार हुआ, परन्तु स्वीकार किए व्रत से चलित नहीं हआ। समग्र रात्री तक अति तीव्र वेदना उत्पन्न हई, परन्तु उस पर ध्यान नही दिया और स्थिर सत्त्व वाले चन्द्रावतंसक राजा ने कार्योत्सर्ग के द्वारा सद्गति प्राप्त की। पशुओं के

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