Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Padmvijay
Publisher: NIrgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 611
________________ ५८८ श्री संवेगरंगशाला बाड़े में पादपोगमन अनशन चाणाक्य ने स्वीकार किया था, सुबन्धु से जलाई हुई आग से जलते हुए भी उन्होंने समाधि मरण को प्राप्त किया। इस प्रकार यदि गृहस्थ भी स्वीकार किए कार्य में इस प्रकार अखण्ड समाधि वाले होते हैं, तो श्रमणों में सिंह समान हे क्षपक ! तू भी उस समाधि को सविशेष सिद्ध कर । बुद्धिमान सत्पुरुष बड़ी आपत्तियों में भी अक्षुब्ध मेरू के समान अचल और समुद्र के समान गम्भीर बनते हैं । निज ऊपर भार को उठाते स्वाश्रयी शरीर की रक्षा नहीं करता, बुद्धि से अथवा धीरज से अत्यन्त स्थिर सत्त्व वाले शास्त्र कथित विहारादि साधना करते उत्तम निर्यामक की सहायता वाला, धीर पुरुष अनेक शिकारी जीवों से भरा हुआ भयंकर पर्वत की खाई में फँसे अथवा शिकारी प्राणियों की हाढ़ में पकड़े गये भी पाप को छोड़कर अनशन की साधना करते हैं । निर्दयता से सियार द्वारा भक्षण करते और घोर वेदना को भोगते भी अवंति सुकुमार ने शुभध्यान 'से आराधना की थी । मुद्गल्ल नामक पर्वत में शेरनी से भक्षण होते हुये भी निज प्रयोजन की सिद्धि करने की प्रीति वाले भगवान श्री सुकौशल मुनि ने मरण समाधि को प्राप्त किया । ब्राह्मण ससुर से मस्तक पर अग्नि जलाने पर भी काउस्सग्ग में रहे भगवान गजसुकुमार ने समाधि मरण प्राप्त किया । इसी तरह साकेतपुर के बाहर कायोत्सर्ग ध्यान में स्थिर रहे भगवान कुरुदत्त पुत्र ने भी गायों का हरण होने से उसके मालिक ने चोर मान कर क्रोध से अग्नि जलाने पर भी मरण समाधि को प्राप्त की । राजर्षि उदायन ने भी भयंकर विष वेदना से पीड़ित होते हुये भी शरीर पीड़ा को नहीं गिनते हुये मरण समाधि को प्राप्त की । नाव में से गंगा नदी में फेंकते श्री अनिका पुत्र आचार्य ने मन से दुःखी हुए बिना शुल्क ध्यान से अन्तकृत केवली होकर आराधना की मुख्य हेतु को प्राप्त किया । श्री धर्मघोष सूरि चंपा नगरी में मांस भक्षण करके भयंकर प्यास प्रगट हुई और गंगा के किनारे पानी था, फिर भी अनशन द्वारा समाधि मरण को प्राप्त किया । रोहिड़ा नगर में शुभ लेश्या वाले ज्ञानी स्कंद कुमार मुनि ने कौंच पक्षी से भक्षण होते हुये उस वेदना को सहन करके समाधि मरण प्राप्त किया । हस्तिनापुर में कुरुदत्त ने दोहनी में शिम की फली के समान जलते हुए उसकी पीड़ा सहन करके समाधि मरण प्राप्त किया । कुणाल नगरी में पापी मन्त्री ने वसति जलाते ऋषभ सेन मुनि भी शिष्य परिवार सहित जलने पर भी आराधक बने थे । तथा पादापोपग मन वाले वज्र स्वामी के शिष्य बाल मुनि ने भी तपी हुई शिला ऊपर मोम के समान शरीर गलते आराधना प्राप्त की थी । मार्ग भूले हुए और प्यास से मुरझाते धन शर्मा बाल मुनि भी नदी का

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