Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Padmvijay
Publisher: NIrgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 609
________________ श्री संवेगरंगशाला चौथा कवच नामक द्वार :-निर्यामणा कराने में एक निपुण और इंगित आकार में कुशल निर्यामक गुरू दुःसह परीषहों से पराभूत और इससे मर्यादा छोड़ने के मन वाला क्षपक की विपरीत चेष्टा को जानकर निजकार्यों को छोड़कर स्नेह भरी मधुर वाणी से शिक्षा दे कि-हे सुविहित ! धैर्य के बल वाला तू यदि रोग और परीषहों को जीत लेगा तो सम्पूर्ण प्रतिज्ञा वाला, मरण में आराधक-पंडित मरण वाला होता तथा जैसे हाथी महान स्तम्भ को भी उखाड़ देता है, वैसे तू अनशन की प्रतिज्ञा तोड़कर महाव्रत समान गुरू का अपमान कर अंकुश समान उनका सद्उपदेश को भी तिरस्कार करके, शरीर की सेवा करने वाले अपने साधुओं को भी पराङमुख रखकर और अत्यन्त भक्ति के भाव से तथा कुतूहल से बहुत लोगों के दर्शन करने आने वाला से विपरीत मुख करके, लज्जा रूपी उत्तम बन्धन को तोड़कर भ्रमण करते तू हे महाभाग ! विविध ऋद्धिरूपी पुण्य जिसमें प्रगट हुए हैं और उत्तम मुनि रूप पात्र के संग्रह से शोभित कान्ति-कीर्ति वाला शोलरूपी (चारित्र) सुन्दर छायादार वन को जल्दी ही नष्ट कर देगा। समिति रूप चारित्र घर की दीवार को तोड़ देगा। गुप्तिरूपी समस्त बाड़ को भी छेदन कर देगा और सद्गुण रूपी दुकानों की पंक्ति को भी चूर्ण कर देगा। तब हे भद्र ! अवश्यमेव (यह कुलवान नहीं है) ऐसा लोकापवाह रूपी धूल से तू मलिन होगा, और अज्ञानी लोग से चिरकाल तक निंदा का पात्र बनेगा। राजादि सन्मान आदि पूर्व में मिला था, परन्तु अब गुणों से भ्रष्ट होगा तो दुर्गति रूपी खड्डे में गिरने से विनाश होगा। इसलिए हे भद्र ! सम्यग् इच्छित कार्य की सिद्धि में विघ्नभूत कांटे से छेदन होने के समान इस असमाधिजनक विकल्प से अभी भी रूक जा! तथा क्षुल्लक कुमार मुनि के समान अब भी तू अक्का के गीत के अर्थ का सम्यग् बुद्धि से अनुसार कर अर्थात् अक्का ने रात्री के अन्तिम में कहा था 'समग्र रात्री में सन्दर गाया है सुन्दर नत्य किया है' अब अल्प काल के लिए प्रमाद मत कर। ऐसा सुनने से नाचने वाली क्षुल्लक मुनि राजपुत्र आदि सावधान हुए। इस प्रकार आज दिन तक तूने अपवाद बिना निर्दोष चारित्र रूप कोढ़ी की रक्षा की है और अब काकिणी के रक्षण में अल्प काल के लिए भी निर्बलता को धारण करता है । बड़े समुद्र को पार किया है अब तुझे एक छोटा सा सरोवर पार करना है। मेरू को उल्लंघन किया है अब एक परमाणु रहा है। इसलिए हे धीर ! अत्यन्त धैर्य को धारण कर । निर्बलता को छोड़ दो। चन्द्र समान उज्जवल अपने कुल का भी सम्यक् विचार कर । प्रमाद रूपी

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