Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Padmvijay
Publisher: NIrgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 638
________________ श्री संवेगरगशाला ६१५ सुन्दर रूप में करवाई है, श्री जिन वचन के जानकार मुनिवर्य को ऐसा ही करना योग्य है। क्योंकि-संयम की पालन करने वाले असहायक को सहायता करते हैं उस कारण से साधु नमने योग्य हैं, क्योंकि अन्तिम आराधना के समय में सहायता करना, इससे दूसरा कोई उत्तम उपकार निश्चिय रूप समग्र जगत में भी नहीं है। वह महात्मा भी धन्य है कि जिसने आराधना रूपी उत्तम नाव द्वारा दुःख रूपी मगरमच्छ के समूह से व्याप्त भयंकर संसार समुद्र को समुद्र के समान पार उतरे हैं। फिर स्थविरों ने पूछा कि-हे भगवन्त ! वह महसेन मुनि यहाँ से कहाँ उत्पन्न हुए हैं ? और कर्मों का नाशकर वह कब निर्वाणपद प्राप्त करेंगे? उसे कहो त्रिभुवन रूपी भवन में प्रसिद्ध यश वाले श्री वीर परमात्मा के प्रथम शिष्य श्री गौतम प्रभु ने कहा कि तुम सब एकाग्र मन से सुनो-आराधना में सम्यक् स्थिर चित्तवाला वह महसेन मुनिवर इन्द्र ने प्रशंसा से कुपित हुए देव ने विघ्न किया, फिर भी मेरूपर्वत के समान ध्यान से निमेष मात्र भी चलित हुए बिना काल करके सर्वार्थ सिद्ध विमान में देदीप्यमान शरीर वाला देव हआ है। आयुष्य पूर्ण होते ही वहाँ से च्यवन कर इसी ही जम्बू द्वीप में जहाँ हमेशा तीर्थंकर चक्रवती और वासुदेव उत्पन्न होते हैं वहाँ पूर्व विदेह की विजय में इन्द्रपुरी समान मनोहर अपराजिता नगरी में, वैरी समूह को जीतने से फैली हुई कीर्ति वाले कीर्तिधर राजा के मुख से चन्द्र के बिम्ब की तुलना करने वाली लाल होठ वाली विजय सेना नाम की रानी होगी। उसके गर्भ में चिरकाल से उत्पन्न हुआ तेजस्वी मुख में प्रवेश करते पूर्ण चन्द्र के स्वप्न से सूचित वह महात्मा पुत्र रूप में उत्पन्न होगा। और नौव मास अतिरिक्त साढ़े सात रात दिन होने के बाद उत्तम नक्षत्र, तिथि और योग में उसका जन्म होगा । अत्यंत पुण्य के उत्कृष्टता से आकर्षित मन वाले देव, उसके जन्म समय में पास आकर सर्व दिशाओं के विस्तार को अत्यन्त शान्त निर्मल रज वाला और पवन के मंद-मंद हवा करके चारों ओर लोगों को क्रीडा करतेकरते नगर में कंभ भर-भर कर श्रेष्ठ रत्नों की वर्षा करने लगे, फिर धवल मंगल को गाती एकत्रित किये हजारों वीरांगनाओं के द्वारा मनोहर और मणि के मनोहर अलंकार से शोभित सर्व नागरिक वाला तथा नागरिकों के द्वारा दिया हुआ अधिक धन के दान से प्रसन्न हुए याचक वाला, याचकों से गाये जाते प्रगट गुण के विस्तार वाले, गुण विस्तार के श्रवण से हर्ष उत्सुकता से सामंत समूह को प्रसन्न करते और ऋद्धि के महान समूह की वधाई होगी। फिर उचित समय में माता-पिता ने रत्नों के समूह का वर्षा होने से यथार्थ

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