Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Padmvijay
Publisher: NIrgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 622
________________ श्री संवेगरंगशाला ५६६ शक्ल लेश्या की उत्कृष्ट अनासक्ति में परिणामी को अर्थात् सर्वथा अनासक्त बनकर जो मरता है उसे अवश्यमेव उत्कृष्ट आराधना होती है । बाद के शेष रहे शुक्न ध्यान के जो अध्यवसाय और पद्म लेश्या के जो परिणाम प्राप्त करते हैं उसे श्रीवीत राग परमात्मा ने मध्यम आराधना कहा है। फिर जो तेजो लेश्या के अध्यवसाय, उस परिणाम को प्राप्त कर जो मरता है उसे भी यहाँ जघन्य आराधना जानना। वह तेजो लेश्या वाला आराधक समकित आदि से युक्त ही होता है वह आराधक होता है ऐसा जानना, केवल लेश्या से आराधक नहीं होता है क्योंकि तेजो लेश्या तो अभव्य देवों को भी होती है। इस प्रकार कई उत्कृष्ट आराधना से समग्र कर्म के प्रदेशों को खतम करके सर्वथा कर्मरज रहित बने सिद्धि को प्राप्त करते हैं और कुछ शेष रहे कर्म के अंशों वाला मध्यम आराधना की साधना कर सुविशुद्ध शुक्ल लेश्या वाला भव सप्तम (अनुत्तर) देव होता है। अप्सराओं वाला कल्पोपंपन्न (बारहवें देव लोक वाले) देव का जो सुख का अनुभव करता है उससे अनन्त गुणा सुख भव सप्तम देवों को होता है। चारित्र तप ज्ञान दर्शन गुण वाला कोई मध्यम आराधक विमानिक इन्द्र और कई सामानिक देवों में उत्पन्न होते हैं। श्रुत भक्ति से युक्त उग्र तप वाले, नियम और योग की सम्यक् शुद्धि वाले धीर आराधक लोकान्तिक देव होते हैं । आगामी आने वाले जन्म में स्पष्ट रूप में अवश्यमेव मुक्ति पाने वाला होता है, वह आराधक देवों की जितनी ऋद्धियाँ और इन्द्रिय जन्य सुख होता है उन सबको प्राप्त करता है। और तेजो लेश्या वाला जो जघन्य आराधना को करता है वह भी जघन्य से सौधर्म देव की ऋद्धि को तो प्राप्त करता ही है। फिर अनुत्तर भोगों को भोगकर वहाँ से च्यवन कर वह उत्तम मनुष्य जीवन को प्राप्त करके अतुल ऋद्धि को छोड़कर श्री जैन कथित धर्म का आचरण करता है। और जाति स्मरण वाला, बुद्धि वाला, श्रद्धा, संवेग और वीर्य उत्साह को प्राप्त करते वह परीषह की सेना को जीतकर और उपवर्ग रूपी शत्रुओं को हराकर शुक्ल ध्यान को प्राप्त करते, शुक्ल ध्यान से संसार का क्षय करके कर्मरूपी आवरण को सर्वथा तोड़कर सर्व दुःखों का नाश करके सिद्धि को प्राप्त करते हैं। क्योंकि जघन्य से भी आराधना करने वाला जीव सर्व कलेशों को नाश करके सात आठ जन्म में तो अवश्य परमपद को प्राप्त करता है। और सर्वज्ञ सर्वदर्शी जन्म जरा आदि दोष रहित निरूपम सुख वाला वह भगवन्त सदा वहाँ रहता है। नारक और तियंचों को दुःख, मनुष्यों को किंचित दुःख, देवों को किंचित सुख और मोक्ष में एकान्त से सुख होता है।

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