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श्री संवेगरंगशाला
मन हरण करता है तो अन्य का क्या कहना ? भद्रा ने कहा कि-किस तरह ? दासियों ने सर्व निवेदन किया। तब भद्रा ने विचार किया कि-उस महाभाग का दर्शन किस तरह करूं ?
फिर एक दिन देव मन्दिर की यात्रा प्रारम्भ हुई, इससे सभी लोग जाते हैं और दर्शन करके फिर वापस आते हैं। दासियों से युक्त भद्रा भी सूर्य उदय होते वहाँ गई, तब गाकर अति थका हुआ उस देव मन्दिर के नजदीक में सोये हुए पुष्पशाल को दासियों ने देखा और भद्रा को कहा कि यह वह पूष्पशाल है। फिर चपटी नाक वाला, वीभत्स होठ वाला, बड़े दांत वाला और छोटी छाती वाला उसे देखा, 'हैं ऐसे रूप वाले से गीत को भी देख लिया, इस तरह बोलती भद्रा ने अत्यंत उल्टा मुख से तिरस्कारपूर्वक थका और उठे हुए पुष्पशाल को दूसरे नीच लोगों ने सब कही। इसे सुनकर क्रोधाग्नि से जलते सर्व अंग वाला वह पुष्पशाल हा धिक् ! निर्भागिणी उस वणिक की पत्नी भी क्या मुझे देखकर हंसती है ? इस तरह अतुल रोष के आधीन अपना सर्व कार्य को भूल गया और उसका अपकार करने की इच्छा से भद्रा के घर पहुँचा, फिर सुन्दर स्वर से अत्यन्त आदरपूर्वक गये पति वाली स्त्री का वृत्तान्त इस तरह गाने लगा जैसे कि-सार्थवाह बार-बार तेरा वृत्तान्त को पूछता है, हमेशा पत्र भेजता है, तेरा नाम सुनकर अत्यन्त प्रसन्न होता है तेरे दर्शन के लिए उत्सुक हुआ वह आ रहा है और घर में प्रवेश करता है इत्यादि उसने उसके सामने इस तरह गाया कि जिससे उसने सर्व सत्य माना और अपना पति आ रहा है, ऐसा समझकर एकदम खड़ी होकर होश भूल गई, अतः ख्याल नहीं रहने से आकाश तल से स्वयं नीचे गिर पड़ी। अति ऊँचे स्थान से गिर जाने से मार लगने से जीव निकल गया। श्री जैनेश्वर के स्नात्र महोत्सव के समय में जैसे इन्द्र काया के पाँच रूप करता है वैसे उसने पंचत्व प्राप्त किया अर्थात् मर गई। कुछ समय के बाद उसका पति आया और पत्नी का सारा वृत्तान्त सुनकर पुष्पशाल की अत्यन्त शत्रुता को जानकर उसे बुलाया और अति उत्तम भोजन द्वारा गले तक खिलाकर कहा कि हे भद्र ! गीत गाते महल ऊपर चढ़। इससे अत्यन्त दृढ़ गीत के अहंकार से सर्व शक्तिपूर्वक गाता हुआ वह महल के ऊपर चढ़ा । फिर गाने के परिश्रम से बढ़ते वेग वाले उच्च श्वास से मस्तक की नस फट जाने से विचारा वह मर गया। इस तरह श्रोत्रेन्द्रिय का महादोष कहा है । अब चक्षु इन्द्रिय के दोष में दृष्टांत देते हैं। वह इस प्रकार :