Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Padmvijay
Publisher: NIrgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 603
________________ श्री संवेग रंगशाला ५८० अतत्व में तत्त्व बुद्धि की अथवा किसी प्रकार भी कभी भी करवाई हो अथवा अनुमोदन किया हो उन सब को मिथ्यात्व के कारणों को यत्नपूर्वक समझकर मैं सम्यग् आलोचना करता हूँ, और उसके प्रायश्चित को स्वीकार करता हूँ । तथा मिथ्यात्व में मूढ़ बुद्धि वाले मैंने संसार में मिथ्या दर्शन को प्रारम्भ किया हो और मोक्ष मार्ग का अपलाप करके यदि मिथ्या मार्ग का उपदेश दिया हो एवं मैंने जीवों को दुराग्रह प्रगट कराने वाले और मिथ्यात्व मार्ग में प्रेरणा देने वाले कुशास्त्रों की रचना की अथवा मैंने उसका अभ्यास किया हो, उसकी भी मैं निन्दा करता हूँ । जन्म के समय ग्रहण करते और मरते समय छोड़ते पाप की आसक्ति में तत्पर जो जन्म जन्मान्तर के शरीर धारण किया, उन सबको भी आज मैं त्याग करता हूँ। जो जीव हिंसा कारक जाल, शस्त्र, हल, मूसल, उखल, चक्की, मशीन आदि जो सर्व प्रकार के अधिकरणों को इस जन्म में अथवा अन्य जन्म में किया, करवाया या अनुमोदन किया हो उन सब की भी मेरी ममता में से विविध - त्रिविध में त्याग करता हूँ। और मूढात्मा मैंने लोभवश कष्ट से धन को प्राप्त कर और मोह से रखकर यदि पाप स्थानों में उपयोग किया हो उसे निश्चय अनर्थभूत समस्त धन की आज मैं भावपूर्वक अपनी ममता से त्रिविध - विविध त्याग करता हूँ । और किसी के भी साथ में मुझे यदि कुछ भी वैर की परम्परा थी और है उसे भी प्रशम भाव में रहे मैं आप सम्पूर्ण रूप में खमाता हूँ । सुन्दर घर कुटुम्ब आदि में मेरा यदि राग था अथवा और आज भी है उसे भी मैं छोड़ता हूँ । अधिक क्या कहूँ ? इस जन्म में अथवा जन्मान्तर में स्त्री, पुरुष या नपुंसक जीवन में रहा हुआ और विषयाभिलाष के वश होकर मैंने गर्भ को गिराया हो तथा परदारा सेवन आदि जो अनार्य भयंकर पाप को किया हो, तथा क्रोध से अपना घात या पर का घात आदि किया हो, मान से यदि पर का खण्डन - अपमानादि किया हो, माया से परवंचनादि रूप भी जो किया हो, और लोभ के आसक्ति से महा आरम्भ - परिग्रह आदि किया हो, तथा आहट्ट दोहट्ट वश पीड़ा से जो विविध अनुचित्त वर्तन किया । और रागपूर्वक मांस भक्षण आदि अभक्ष्य भक्ष्यादि किया, मद्य, शराब अथवा लावक नामक पक्षी रस आदि जो कुछ अपेय का पान किया हो, द्वेष से जो कुछ परगुण को सहन नहीं किया, निन्दा अवर्णवाद आदि किया, और मोह महाग्रह से ग्रसित हुआ, और इससे हेय, उपादेय के विवेक से शून्य चित्त वाले मैंने प्रमाद से अनेक प्रकार का अनेक भेद से जो कुछ भी पापानुबन्धी पाप को किया और अमुकअमुक इस पाप को किया और अमुक इन पाप को अब करूँगा । ऐसे विकल्पों

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