Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Padmvijay
Publisher: NIrgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 601
________________ ५७८ श्री संवेगरंगशाला आलोचना करता हूँ और प्रायश्चित को स्वीकार करता हूँ । सुविहित साधुओं, सुविहित साध्वियों, संवेगी श्रावक, सुविहित श्राविकाओं का मैंने मन, वचन, काया से यदि कुछ भी अनुचित किसी प्रकार कभी भी सहसात्कार या अनाभोग से किया हो उसे मैं त्रिविध खमाता हैं। करूणा से पूर्ण मन वाले उन सर्व को विनय करते और संवेग परायण मनवाले मुझे क्षमा करे। उनकी भी यदि कोई आशातना किसी तरह मैंने की हो, उसकी मैं सम्यग् आलोचना करता हूँ और मैं प्रायश्चित को स्वीकार करता हूँ। तथा श्री जैन मन्दिर मूर्ति, श्रमण आदि के प्रति मैं यदि कोई उपेक्षा, अपमान और द्वेष बुद्धि की हो उसे भी सम्यग् आलोचना करता हूँ। तथा देव द्रव्य, साधारण द्रव्य को यदि राग, द्वेष अथवा मोह से भोग किया हो या उसकी उपेक्षा की हो उसे सम्यक् आलोचना करता है। मैंने श्री जैन वचन को स्वर, व्यंजन, मात्रा, बिन्दु या पद आदि से कम अथवा अधिक पढ़ा हो और उसे उचित काल, विनयादि आचार रहित पढ़ा हो, तथा मन्द पुण्य वाले और राग, द्वेष, मोह में आसक्त चित्त वाले मैंने मनुष्य जीवन आदि अति दुर्लभ समग्र सामग्री के योग होते हुये भी परमार्थ से अमृत तुल्य भी श्री सर्वज्ञ कथित आगम वचन को यदि नहीं सुना हो, अथवा अविधि से सुना हो या विधिपूर्वक सुनने पर भी श्रद्धा नहीं की अथवा यदि किसी विपरीत रूप में श्रद्धा की हो अथवा उसका बहुमान नहीं किया हो, अथवा यदि विपरीत बात कही हो, तथा बल वीर्य-पुरुषकार आदि होने पर भी उसमें कथनानुसार मेरी योग्यता के अनुरूप मैंने आचरण नहीं किया अथवा विपरीत आचरण किया हो या मैंने उसमें यदि हांसी की हो और यदि किसी प्रकार प्रद्वेष किया हो, उन सबकी मैं आलोचना करता हूँ और प्रायश्चित को स्वीकार करता हूँ। भयंकर संसार अटवी में परिभ्रमण करते मैंने विविध जन्मों में, जिसका जो भी अपराध किया हो, उन प्रत्येक को भी मैं खमाता है। सर्व माता, पिताओं को, सर्व स्वजन वर्ग को और मित्रवर्ग को भी मैं खमाता है, तथा शत्र वग को तो सविशेषतया मैं खमाता हैं। फिर उपकारी वर्ग को और अनुपकारी वर्ग को भी मैं खमाता हूँ तथा दृष्ट प्रत्यक्ष वर्ग को मैं खमाता हूँ और अहष्ट परोक्ष वर्ग को भी खमाता हूँ । सूनी हुई या नहीं सुनी हुई, जानी हुई या नहीं जानी हुई, कल्पित या सल्य की, अयथार्थ या यथार्थ तथा परिचित अथवा अपरिचित को और दीन, अनाथ आदि समग्र प्राणी वर्ग को भी मैं प्रयत्न से आदरपूर्वक खमाता हूँ, क्योंकि यह मेरा खामना का समय है। धर्मी वर्ग को और अधर्मी वर्ग के समूह को भी मैं सम्यक् खमाता है तथा साधार्मिक वर्ग को और

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