Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Padmvijay
Publisher: NIrgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 589
________________ ५६६ श्री संवेगरंगशाला किसी कारण से अलग हुआ, फिर अकेले चलने लगा और अटवी में मार्ग भूल गया, वहाँ भूख, प्यास और थकावट से अत्यन्त पीड़ित हुआ, उसकी ग्वालों के चार बालकों ने प्रयत्नपूर्वक सेवा की, इससे स्वस्थ हुए शरीर वाले उन्होंने बच्चों को धर्म समझाया। उन सबने प्रतिबोध प्राप्त किया और उस साधु के शिष्य हुये। वे चारों साधु धर्म का पालन करते थे, परन्तु उसमें दो दुर्गच्छा करके मरकर तप के प्रभाव से देवलोक में देवता हए । समय पूर्ण होते वहाँ से आयुष्य पूर्ण करके दशपुर नगर में संडिल नामक ब्राह्मण से और उसकी यतिमति नामक दासी की कुक्षी से पुत्र रूप में दोनों युगल रूप जन्म लिया और क्रमशः बुद्धि-बल, यौवन से सम्यग् अलंकृत हुए। किसी समय खेत के रक्षण के लिए अटवी में गये और वहाँ रात्री में बड़ वृक्ष के नीचे सोये। वहाँ उन दोनों को सर्प ने डंक लगाया । औषध के अभाव में मरकर कालिंजय नामक जंगल में दोनों साथ में जन्म लेने वाले मृग हुए । स्नेह के कारण साथ ही चरते थे, अशरण रूप उन दोनों को शिकारी ने एक ही बाण के प्रहार से मारकर यम मन्दिर पहुंचा दिया । वहाँ से गंगा नदी के किनारे दोनों का युगल हंस रूप में जन्म हुआ। वहाँ भी मच्छीमार ने एक ही बन्धन से दोनों को बाँधा और निर्दय मन वाले उसने गरदन मरोड़कर मार दिया। वहाँ से वाराणसीपूरी में बहत धन धान्य से समृद्धशाली, चण्डाल का अग्रसर भूत दिभ नामक चण्डाल के घर परस्पर दृढ़ स्नेह वाले चित्र और सम्भूति नाम से दो पुत्र उत्पन्न हए। एक समय इसी नगर के शंख नामक राजा के नमुचि नामक मन्त्री ने महा अपराध किया। क्रोधित हुए राजा ने लोकपवाद से बचने के लिए गुप्त रूप में मारने के लिए चण्डाल के अग्रसर उस भूतदिन को आदेश दिया। उस नमुचि को वध के स्थान ले जाकर कहा कि-"यदि भौंरे में रहकर यदि मेरे पुत्रों को अभ्यास करवाओगे तो तुझे मैं छोड़ देता है"। जीने की इच्छा से उसने वह स्वीकार किया और फिर पूत्रों को पढ़ाने लगा। परन्तु मर्यादा छोड़कर उनकी माता चंडालणी के साथ व्यभिचार सेवन किया। उसे चंडाल के अग्रेसर भूतदिन ने 'यह जार है' ऐसा जानकर मार देने का विचार किया। परम हितस्वी के समान चित्र, संभूति ने उसे एकान्त में अपने पिता के मारने का अभिप्राय बतलाया। इससे रात्री में नमुचि भागकर हस्तिनापुर नगर में गया और वहाँ सनत कुमार चक्रवर्ती का मन्त्री हुआ। इधर गीत नृत्यादि में कुशल बने उस चंडाल पुत्र चित्र, संभूति ने वाराणसी के लोगों को गीत, नृत्य से अत्यन्त परवश कर दिया। अन्य किसी दिन जब नगर में कामदेव का महोत्सव चल रहा था उस समय चौराहे आदि

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