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श्री संवेगरंगशाला बोधि प्राप्ति कहाँ से हो सकती है ? कर्म भूमि में भी छह खंडों में से पाँच खंड तो सर्वथा अनार्य हैं क्योंकि मध्य खंड के बाहर धर्म की अयोग्यता है। और जो भरत में छठा खंड श्रेष्ठ है उसमें भी अयोध्या के मध्य से साढ़े पच्चीस देश के बिना शेष अत्यन्त अनार्य है, और जो साढ़े पच्चीस देश प्रमाण आर्य देश हैं वहीं भी साधुओं का विहार किसी काल में किसी प्रदेश में ही होता है। क्योंकि कहा है कि :
(१) मगध देश में राजगृही, (२) अंग देश में चम्पा, (३) बंग देश में ताम लिप्ती, (४) कलिंग में कंचनपुर, (५) काशी देश में वाराणसी, (६) कौशल देश में साकेतपुर, (७) कुरु देश में गजपुर-हस्तिनापुर, (८) कुर्शात देश में शौरिपुर, (६) पंचाल देश में कंपिल्लपुर, (१०) जंगला देश में अहिछत्रा, (११) सोरठ देश में द्वारामती, (१२) वैदह में मिथिला, (१३) वच्छ देश में कौशाम्बी, (१४) शांडिल्य देश में नंदिपुर, (१५) मलय देश में भद्दिलपुर, (१६) वच्छ देश में वैराट, (१७) अच्छ देश में वरूणा, (१८) दर्शाण में मतिकावती, (१६) चेदी में शुक्तिमती, (२०) सिंधु सैपि में वीतमयपरण (२१) सूरसेन में मथुरा, (२२) भंगी देश में पावापुरी, (२३) वर्ता देश में मासपुरी, (२४) कुणाल में श्रावस्ती, (२५) लाट देश में कोटि वर्षिका और आधा कैकेय देश में श्वेतांबिका नगरी, ये सभी देश आर्य कहे हैं। इस देश में ही श्री जैनेश्वर, चक्रवती, बलदेव और वासुदेवों के जन्म होते हैं। इसमें पूर्व दिशा में अंग और मगध देश तक दक्षिण में कौशाम्बी तक, पश्चिम में थूण देश तक और उत्तर में कुणाल देश तक आर्य क्षेत्र है। इस क्षेत्र में साधुओं को विहार करना कल्पता है परन्तु इससे बाहर जहाँ ज्ञानादि गुण की वृद्धि न हो वहाँ विचरणा अयोग्य है । और जहाँ ज्ञानादि गुण रत्नों के निधान और वचन रूपी किरणों से मिथ्यात्व रूप अन्धकार को नाश करने वाले मुनिवर्य विचरते नहीं हैं, वहाँ प्रचण्ड पाखंडियों के समूह के वचन रूप प्रचंड वचनों से प्रेरित बोधि, वायु से उड़ी हुई रूई की पूणी के समान स्थिर रहना अति दुर्लभ है। इस तरह हे देवानु प्रिय ! बोधि की अति दुर्लभता को जानकर और भयंकर संसार में चिरकाल तक भ्रमण करने के बाद उसे प्राप्त करके अब तुझे नित्य किसी भी उपाय से अति आदरपूर्वक ऐसा करना चाहिये कि जैसे भाग्यवश से मिली बोधिकी सफलता हो, क्योंकि प्राप्त हुई बोधि को सफल नहीं करते और भविष्य में पुनः इसकी इच्छा करते तू दूसरे बोधि के दातार को किस मूल्य से प्राप्त करेगा ? और मूढ़ पुरुष तो कभी देव के समान सुख को, कभी नरक के समान महादुःख को और कभी त्रियंच आदि के भी दाग देना, खसी करना