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श्री संवेगरंगशाला
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रूप, बल, आरोग्य और लावण्य की शोभा, ये सारी भी अस्थिर हैं। भवन पति, वाण व्यंतर, ज्योतिषी, और बाहर कल्प आदि में उत्पन्न हुए सर्व देवों का भी शरीर रूप आदि समस्त अनित्य है। मकान, उपवन, शयन, आसन, वाहन और यान आदि के साथ के यह लोक-परलोक में भी जो संयोग है वह भी अवश्य ही अनित्य है। एक पदार्थ को अनुमान द्वारा भी अनित्यता को सर्वगत मानकर धन्य पुरुष नग्गति राजा के समान धर्म में उद्यम करता है। वह इस प्रकार :
नग्गति राजा की कथा गंधार देश का स्वामी नग्गति नामक राजा था, वह घोड़े, हाथी, रथ के ऊपर बैठे अनेक सामंत राजाओं के समूह से घिरे हुए अति ऋद्धि समूह शोभता था। स्वयं बसन्त ऋतु के समागम से शोभायमान उद्यान को देखने के लिए अपने नगर से निकला। वहाँ जाते हुए अर्ध बीच में विकसित बड़े पत्रों से शोभित, पूष्पों के रस बिन्दुओं से पीली हई मंजरी के समूह से रमणीय, घूमते हुये भौंरे भू-भू गुंजार के बहाने से मानो गीत गाता हो, इस तरह वायु से प्रेरणा पाकर शाखा रूपी भुजाओं द्वारा मानो नृत्य प्रारस्भ किया हो, मदोन्मत्त कोमल शब्द के बहाने से मानो काम की स्तुति करता हो, और गीच पत्तोरूप परिवार से व्याप्त एक खिले आम्र वृक्ष को देखा। फिर उसके रमणीयता गुण से प्रसन्न चित्त वाले उस राजा ने वहाँ से जाते कुतूहल से एक मंजरी तोड़ ली। इससे अपने स्वामी के मार्गानुसार चलने वाले सेवक लोगों में से किसी ने मंजरी, किसी ने पत्ते समूह, किसी ने गुच्छे तो किसी ने डाली का अग्र भाग को अन्य किसी ने कोमल पत्ते तो किसी ने कच्चे फल समूह को ग्रहण कहने से क्षण में उस वृक्ष को ठुठ जैसा बना दिया। फिर आगे चलते रहट यंत्र का चीत्कार रूप शब्दों से दिशाएँ बहरी हो गईं ऐसे फैलते सुगन्ध के समूह से आते भौंरे की श्रेणियों से मनोहर विकसित ठण्डे प्रदेश वाले उस उद्यान में पहुँचा। थके हुए यात्री के समान थोड़े समय घूमकर फिर उस मार्ग से ही वापिस चला, राजा ने वहाँ उस वृक्ष को नहीं देखने से लोगों से पूछा कि-वह आम्र का वृक्ष कहाँ है ? तब लोगों ने ठुठ समान रूप वाला उस आम्र वृक्ष को दिखाया तब विस्मित मन वाले राजा ने कहा कि-ऐसा वह कैसे बन गया ? लोगों ने भी पूर्व की सारी बात कही।
इसे सुनकर परम संवेग को प्राप्त करते राजा भी अत्यन्त सूक्ष्म बुद्धि से विचार करने लगा कि-अहो ! संसार के दुष्ट चेष्टा को धिक्कार है, क्योंकि जहाँ पर ऐसी वस्तु नहीं है कि जिसको अनित्यता से सदा सर्व प्रकार से नाश