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श्री संवेगरंगशाला
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है इसमें कोई संशय नहीं है, परन्तु अति उद्यम वाला भी वह व्यक्ति एक दिन में श्रुतधर नहीं हो सकता है । अनेक करोड़ वर्ष तक नारक जीव जिस कर्म को खत्म करता है, उतने कर्मों को तीन गुप्त से गुप्त ज्ञानी पुरुष एक श्वास मात्र में खत्म कर देते हैं । ज्ञान से तीन जगत में रहे चराचर सर्व भावों को जानने वाले हो सकते हैं, इसलिये बुद्धिमान को प्रयत्नपूर्वक ज्ञान का अभ्यास करना चाहिए। ज्ञान को पढ़े, ज्ञान को गुणे अर्थात् ज्ञान का चिन्तन करे, ज्ञान से कार्य करे, इस तरह ज्ञान में तन्मय रहने वाला ज्ञानी संसार समुद्र को पार होता है । यदि निश्चय जीव की परम विशुद्धि को जानने की अभिलाषा है तो मनुष्य को दुर्लभ, बोधि को प्राप्त करने के लिये निश्चय ही ज्ञान का अभ्यास करना चाहिए। श्रुत को सर्व बल से, सर्व प्रयत्न से भी पढ़ना चाहिए और तप तो बल के अनुसार यथाशक्ति करना चाहिए। क्योंकि-सूत्र विरुद्ध तप करने से भी वह गुण कारक नहीं होता है । जब मरण नजदीक आता है तब अत्यन्त समर्थ चित्त वाला भी बारह प्रकार के श्रुत स्कन्ध (द्वादशाँगी) का सर्व अनुचिन्तन नहीं कर सकता है, इसलिए जो श्री जैनेश्वर के सिद्धान्त रूप एक पद में भी संयोग (अभेद) को करता है, वह पुरुष उस अध्यात्म योग से अर्थात् आत्म रमणता से मोह जाल को छेदन करता है। जो कोई मोक्ष साधक व्यापार में लगा रहता है उसके कारण उसका ज्ञान बना रहता है, क्योंकि उसके कारण वह वीतरागता को प्राप्त करता है अर्थात् जितना ज्ञान का अभ्यास-उद्यम करता है उतना ही ज्ञान आत्मा का बनता है और उस एक पद से मुक्ति होती है।
जो श्रुतज्ञान के लिए अल्प आहार पानी लेता है उसको तपस्वी जानना, श्रुतज्ञान रहित जीव का तप करता है वह बुखार से पीड़ित भूख को सहन करता है । अर्थात् ज्ञानी अल्प भोजन करने वाला तपस्वी कहलाता है और उस अल्प भोजन में तृप्ति होती है, जब अज्ञानी का महातप भी भूखे रहे के समान कष्टकारी बनता है, ज्ञान के प्रभाव से त्याग करने योग्य का त्याग होता है और करने योग्य किया जाता है । ज्ञानी कर्तव्य को करना और अकार्य को छोड़ना जानता है। ज्ञान सहित चारित्र निश्चय सैंकड़ों गुणों को प्राप्त कराने वाला होता है। श्री जैनेश्वर भगवान की आज्ञा है कि ज्ञान से रहित चारित्र नहीं है । जो ज्ञान है वह मोक्ष साधना में मुख्य हेतु है, जो कारण है वह शासन का सार है और जो शासन का सार है वही परमार्थ है, ऐसा जानना । इस परमार्थ रूप तत्व को प्राप्त करने वाला जीव के बन्ध और मोक्ष को जानता है और बन्ध मोक्ष को जानकर अनेक भव संचित कर्मों का क्षय