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श्री संवेगरंगशाला
संसर्ग से मूढ़ मन वाला, मैथुन क्रिया में आसक्त, मर्यादा रहित बना हुआ और भूत भविष्य को भी नहीं गिनता, वह पुरुष ऐसा कौन सा पाप है कि जिसे वह आचरण नहीं करता ? स्त्री के संसर्ग से पुरुष में स्थान प्राप्त होने से इन्द्रिय जन्य शब्दादि विषय, कषाय विविध संज्ञा और गारव आदि सब दोषों को स्वभाव से ही शीघ्र बढ़ते हैं यदि वय से वृद्ध और बहुत ज्ञानवान हो, तथा प्रमाणिक लोकमान्य मुनि एवं तपस्वी हो फिर भी स्त्रियों के संसर्ग से वह अल्पकाल में दोषों को प्राप्त करता है। तो फिर युवान अल्पज्ञान वाले अज्ञानी आदि स्वछन्दचारी और मूर्ख को स्त्री के संसर्ग से मूल में से ही विनाश अर्थात् व्रत से भ्रष्ट होता है उसमें क्या आश्चर्य है ? मनुष्य रहित निर्जन गहन जंगल में रहने वाला भी कुल बालक मुनि ने स्त्री के संसर्ग से महा विडम्बना प्राप्त की थी ।
जो ज़हर के समान स्त्री के संसर्ग को सर्वथा त्याग करता है वह जिंदगी तक निश्चल ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है क्योंकि - देखने मात्र से भी वह स्त्री पुरुष को मूच्छित करती है । इसलिए समझदार पुरुष को समझना चाहिए कि पापी स्त्री के नेत्रों में निश्चय जहर भरा हुआ है। तीव्र जहर, सर्प और सिंह का संसर्ग एक बार ही मारता है जबकि स्त्री का संसर्ग पुरुष को अनन्ती बार मारता है । इस तरह व्रत रूपी वन के मूल में अग्नितुल्य स्त्री की सोबत को जो हमेशा त्याग करता है, वह सुखपूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है और यश का विस्तार करता है । इसलिए हे क्षपक मुनि ! यदि मोह के दोष से किसी समय भी विषय की इच्छा हो तो भी पाँच प्रकार के स्त्री वैराग्य में उपयोग वाला बनना चाहिए। कीचड़ में उत्पन्न हुआ और जल में बढ़ने वाला कमल जैसे वह कीचड़ और जल से लिप्त नहीं होता है वैसे स्त्री रूपी कीचड़ से जन्मा हुआ और विषय रूपी जल से वृद्धि होने पर भी मुनि उसमें लिप्त नहीं होते हैं । अनेक दोष रूपी हिंसक प्राणियों के समूह वाली, मायारूपी मृग तृष्णा वाली और कुबुद्धि रूपी गाढ़ महान् जंगल वाली स्त्री रूपी अटवी में मुनि मुरझाता नहीं है । सर्व प्रकार की स्त्रियों में सदा अप्रमत्त और अपने स्वरूप में दृढ़ विश्वास रखने वाला मुनि चारित्र का मूलभूत और सद्गति का कारण रूप ब्रह्मचर्य को प्राप्त करता है । जो स्त्री के रूप को चिरकाल टकटकी दृष्टि से नहीं देखता है और मध्याह्न के तीक्ष्ण तेज वाले सूर्य को देखने के समान उसी समय दृष्टि को वापिस खींच लेता है, वही ब्रह्मचर्य व्रत को पार उतार सकता है । दूसरे मेरे विषय में क्या बोल