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श्री संवेगरंगशाला
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की हो, उसकी भी निन्दा करता हूँ। क्रोध, मान, माया, अथवा लोभ द्वारा भी कोई बड़ा या छोटा भी पाप किया, करवाया हो या अनुमोदन किया हो, उसकी भी निन्दा करता हूँ । राग, द्वेष से अथवा मोह से - अज्ञानता से, विवेक रत्न से भ्रष्ट हुए तूने इस लोक या परलोक विरुद्ध जो भी कार्य किया हो उसकी गर्हा करता हूँ | इस जन्म में अथवा अन्य जन्मों में मिथ्या दृष्टि से वश होकर तूने श्री जैन मन्दिर, श्री जैन प्रतिमा और श्री संघ आदि के मन, वचन, काया से निश्चयपूर्वक जो कोई प्रदेश अवर्णवाद - निन्दा तथा नाश आदि किया हो, उन सर्व की भी विविध विविध हे सुन्दर मुनि ! तू गर्हा कर । मोह रूपी महाग्रह से परवश हुआ और इससे अत्यन्त पाप बुद्धि वाला, तू लोभ से आक्रांत मन द्वारा यदि किसी श्री जैन प्रतिमा का भंग किया हो, गलाया हो, तोड़ाफोड़ा या क्रय-विक्रय आदि पाप स्व, पर द्वारा किया है, करवाया हो या अनुमोदन किया हो, उसकी सम्यक् गर्दा कर । क्योंकि यह तेरा आत्मा साक्षी गर्हा करने का समय है । तथा इस जन्म में अथवा अन्य जन्मों में मिथ्यात्व का विस्तार करने वाला, सूक्ष्म - बादर अथवा तस- -स्थावर जीवों का एकान्त में विनाश करने वाला जैसे कि उखल, रहट, चक्की, मूसल, हल, कोश आदि शस्त्रों को रखे । तथा धर्म बुद्धि से अग्नि को जलाया, जैसे कि खेत में काँटे जलाना, जंगल जलाना, आदि पाप कार्यों को किए, वाव, कुंए, तालाब, आदि खोदवाए अथवा यज्ञ करवाया इत्यादि जो हिंसक कार्य किए हों, उन सबकी गर्हा कर । सम्यक्त्व को प्राप्त करके भी इस जन्म में जो कोई उसके विरुद्ध आचरण किया हो, उन सर्व की भी संवेगी तू सम्यक् गर्हा कर । इस जन्म में अथवा अन्य जन्म में साधु या श्रावक होने पर भी तूने श्री जैन मन्दिर, प्रतिमा जैनागम और संघ आदि के प्रति रागादि वश होकर 'यह अपना, यह पराया है' इत्यादि बुद्धि - कल्पनापूर्वक यदि थोड़ी भी उदासीनता की हो, अवज्ञा की हो अथवा व्याघात या प्रदेष किया हो उन सर्व का भी, हे क्षपक मुनि ! तू त्रिविध-त्रिविध द्वारा मन, वचन, काया से करना, कराना, अनुमोदन द्वारा सम्यग् प्रतिक्रमण कर । श्रावक जोवन प्राप्त कर तूने अणुव्रत, गुणव्रत आदि में जो कोई भी अतिचार स्थान मन से किया हो उसका भी प्रतिघात - गर्दा कर ।
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तथा इस जन्म में अथवा पर- जन्म में यदि कोई अंगार कर्म, वन कर्म, शंकट कर्म, भाटक कर्म एवं यदि कोई स्फोटक कर्म या तो कोई दांत का व्यापार, रस का व्यापार, लाख का व्यापार, विष का व्यापार या केश व्यापार, अथवा जो कोई यन्त्र पिल्लण कर्म, निलछन कर्म, जो दावाग्नि दान, सरोवर द्रह, तालाबादि का शोषण या किसी असती पोषण किया हो या करवाया हो तथा