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श्री संवेगरंगशाल
क्षय करती है । स्त्रियों में विश्वास, स्नेह, परिचय-आँखों में शरम, कृतज्ञत आदि गुण नहीं होते हैं क्योंकि-अन्य पुरुष में रागवाली वह अपने कुल कुटुम् को शीघ्र छोड़ देती है। स्त्रियाँ पुरुष को क्षण में बिना प्रयास से विश्वा दिलाती है, जबकि पुरुष तो अनेक प्रकार से भी स्त्री को विश्वास नह दिला सकता है। स्त्री का अति अल्प भी अविनय होने पर लाखों सत्कार्य उपकार का भी वह अपमान कर अपने पति, स्वजन, कुल और धन का * नाश करती है। अथवा अपराध किए बिना भी अन्य पुरुष में आसक स्त्रियाँ, पति, पुत्र, ससुर और पिता को भी वध करती है। पर पुरुष आसक्त स्त्री सत्कार उपकार, गुण को उसका सुखपूर्वक लालन पालन को स्नेह और मधुर वचन कहे हों फिर भी उसे निष्फल करती है। जो पुरु स्त्रियों में विश्वास करता है । वह चोर, अग्नि, शेर, जहर, समुद्र, मदोन्मा हाथी, काला सर्प और शत्रु में विश्वास करता है। अथवा जगत में शे आदि तो पुरुष को इतने दोष कारण नहीं होता कि उतने महादोष कारर दुष्टा स्त्री होती है । कुलीन स्त्री को भी अपना पुरुष तब तक प्रिय होता है ज तक वह उस पुरुष को रोग, दरिद्रता अथवा बुढ़ापा नहीं आता। बुड्ढा, दरि अथवा रोगी पति भी उसको पिली हुई ईंख समान अथवा मुरझाई हुई सुगन रहित माला के समान दुर्गंध तुल्य अनादार पात्र बनता है। स्त्री अनाद करती हई भी कपट से पुरुषों को ठगती है, और पुरुष उद्यम करने पर भ निश्चय रूप में स्त्री को ठग नहीं सकता है । धूल से व्याप्त वायु के समा स्त्रियाँ पुरुष को अवश्य मलिन करती हैं और संध्याराग के समान केवर क्षणिक राग करती है। समुद्र में जितना पानी और तरंगें होती हैं तथा नदियं में जितनी रेती होती है उससे भी अधिक स्त्री के मन के अभिप्रायः होते हैं आकाश, सर्व भूमि, समुद्र, मेरूपर्वत और वायु आदि दुर्जय पदार्थों को पुरु जान सकता है, परन्तु स्त्रियों के भावों को किस तरह नहीं जान सकता है।
जैसे बिजली पानी का बुलबुला और आकाश में प्रगट हुआ ज्वाल रहित अग्नि प्रकाश चिरस्थिर नहीं रहता है वैसे स्त्रियों का चित्त एक पुरुष । चिरकाल प्रसन्न नहीं रहता है । परमाणु भी किसी समय मनुष्य के हाथ । आ सकता है, परन्तु निश्चय में स्त्रियों का अति सूक्ष्म पकड़ने में वह शक्ति मान नहीं है। क्रोधायमान भयंकर काला सर्प, दुष्ट सिंह और मदोन्मत्त हार्थ को भी पुरुष किसी तरह वश कर सकता है, परन्तु दुष्ट स्त्रियों के चित्त के वश नहीं कर सकता है । कई बार पानी में भी पत्थर तैरता, और अग्नि में न जलाकर, उल्टा हिम के समान शीतल बन जाती है, परन्तु स्त्रियों को कर्भ