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श्री संवेगरंगशाला
करता है। अदर्शनीय अर्थात् मिथ्यात्व को ज्ञान नहीं होता है, अज्ञानी को चारित नहीं है और अगुणी को मोक्ष नहीं है, इस तरह अज्ञानी को मोक्ष नहीं है । सर्व विषय में बार-बार जानने योग्य उस बहुश्रुत का कल्याण हो कि श्री जैनेश्वर देव सिद्ध गति प्राप्त करने पर भी वे ज्ञान से जगत में प्रकाश करते हैं। इस जगत में मनुष्य चन्द्र के समान बहुश्रुत के मुख का जो दर्शन करता है, इससे अति श्रेष्ठ, अथवा आश्चर्यकारी या सुन्दरतर और क्या है ? चन्द्र में से किरण निकलती है वैसे बहुश्रुत के मुख में से श्री जैन वचन निकलते हैं, इसे सुनकर मनुष्य संसार अटवी को पार हो जाते हैं ।
जो सम्पूर्ण चौदह पूर्वी, अवधि ज्ञानी और केवल ज्ञानी है, उन लोकोत्तम पुरुषों का ही ज्ञान निश्चय ज्ञान है । अति मूढ़ अनेक लोगों में भी एक ही जो श्रुत - शीलयुक्त हो वह श्रेष्ठ है, इसलिये प्रवचन - (संघ) में श्रुतशील रहित का सन्मान नहीं करे । इस कारण से प्रमाद को छोड़कर अप्रमत्त रूप श्रुत में प्रयत्न करना योग्य है। क्योंकि इसके द्वारा स्व और पर को भी दुःख समुद्र में से पार उतरते हैं । ज्ञान उपयोग से रहित पुरुष अपने चित्त को वश करने के लिए शक्तिमान नहीं होता है । उन्मत्त हाथी को जैसे अंकुश वश करता है, वैसे उन्मत्त चित्त को वश करने में ज्ञान अंकुशभूत है । जैसे अच्छी तरह से प्रयोग की हुई विद्या पिशाच को पुरुषाधीन करता है, वैसे ज्ञान को अच्छी तरह उपयोग करे तो हृदय रूपी पिशाच को वश करता है । जैसे विधिपूर्वक मन्त्र का प्रयोग करने से काला नाग शान्त होता है वैसे अच्छी तरह उपयोगपूर्वक ज्ञान द्वारा हृदय रूपी काला नाग उपशान्त होता है । मदोन्मत्त जंगली हाथी को भी जैसे रस्सी से बाँध सकते हैं वैसे यहाँ पर ज्ञान रूपी रस्सी द्वारा मन हाथी को बाँध सकते हैं । जैसे बन्दर रस्सी के बन्धन बिना क्षण भर भी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता, वैसे ज्ञान बिना मन एक क्षण भी मध्यस्थ - समभाव वाला स्थिर नहीं होता है । इसलिए उस अति चपल मन रूपी बन्दर को श्री जैन उपदेश द्वारा सूत्र से ( श्रुतज्ञान से ) बाँधकर शुभध्यान में क्रीड़ा करानी चाहिए। इससे राधावेध करने वाले को आठ चक्रों में उपयोग लगाने के समान क्षपक मुनि को भी सदा ज्ञानोपयोग विशेषतया कहा है । विशुद्ध लेश्या वाले जिसके हृदय में ज्ञानरूपी प्रदीप प्रकाश करता है उसे श्री जैन कथित मोक्ष मार्ग में चारित्र धन लूटने का भय नहीं होता है । ज्ञान प्रकाश बिना जो मोक्ष मार्ग में चलने की इच्छा करता है, वह विचारा जन्मांध भयंकर अटवी में जाने की इच्छा करता है, उसके समान जानना । यदि खण्डित – भिन्न-भिन्न पद वाले श्लोकों ने भी यव नामक साधु को मरण