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श्री संवेगरंगशाला सकता है ! श्री जिन शासन से संस्कारित बुद्धिवाला और श्रुतज्ञान रूपी समृद्धिशाली ज्ञानी इस जीवलोक में श्रुतज्ञान से देव और असुर से युक्त मनुष्यों से युक्त, गरूड सहित, नाग सहित, तथा गंधर्व व्यंतर सहित उर्ध्व अधो और तिर्छा लोक तथा जीव कर्म बन्धन से युक्त, गति और अगति आदि सबको जानता है। जैसे धागा युक्त सुई कचरे में गिरी हुई भी नाश नहीं होती है वैसे सूत्र-अर्थात् श्रुतज्ञान सहित जीव भी संसार में परिभ्रमण नहीं करता है। जैसे कचरे के ढेर में पड़ी हुई धागे बिना की सुई खो जाती है वैसे संसार रूपी अटवी में ज्ञान रहित पुरुष भी खो जाता, अर्थात् संसार में भटकता है । जैसे निपुण वैद्य आगम से रोग की चिकित्सा करने का जानता है वैसे आगम से ज्ञानी चारित्र की शुद्धि को ज्ञान द्वारा करता है। जैसे आगम ज्ञान रहित वैद्य व्याधि की चिकित्सा को नहीं जानता है वैसे आगम रहित पुरुष चारित्र की शुद्धि को नहीं जानता है। इसलिए मोक्ष के अभिलाषी अप्रमत्त पुरुषों को पहले पूर्व पुरुषों ने कथित आगम में उप्रमत्त रूप में उद्यम करना चाहिए। बुद्धि हो अथवा न हो, फिर भी ज्ञान की इच्छा वाले को उद्यम करना चाहिए क्योंकि ज्ञानाभ्यास से वह बुद्धि कर्म के क्षयोपशम से साध्य हो जाती है। यदि एक दिन में एक पद को, अथवा पक्ष में आधा श्लोक को भी याद कर सकता है, फिर भी ज्ञान के अभ्यास वाला तू उद्यम को नहीं छोड़ना।
आश्चर्य तो देख ! स्थिर और बलवान् पाषाण को भी अस्थिर जल की धारा खत्म करती है । शीतल और कोमल थोड़ा-थोड़ा भी हमेशा बहने वाला
और पर्वत के संयोग को नहीं छोड़ने वाला जल पर्वत का भी भेदन कर देता है। बहुत भी अपरिमित-परावर्तन रहित और अशुद्ध, स्खलना और शंका वाले श्रुतज्ञान द्वारा मनुष्य जानकार ज्ञानी पुरुषों का हँसी का पात्र बनता है,
और थोड़ा भी अस्खलित, शद्ध एवं स्थिर परिचित स्वाध्याय से अर्थ का ज्ञान प्राप्त करके मनुष्य अलज्जित और अनाकुल बनता है। जो गंगा नदी के रेती का माप करना और जो दो हाथ चुल्लू से समुद्र के जल को उलीचन में समर्थ होते हैं, वे ज्ञान के गुणों से माप सकते हैं। पाप से निर्वृत्ति, कुशल धर्म में प्रवृत्ति
और विनय की प्राप्ति, ये तीनों ज्ञान का मुख्य फल हैं । संयम योग की आराधना और श्री वर्धमान प्रभु की आज्ञा, ये दोनों ज्ञान के बल से जान सकते हैं, इसलिए ज्ञान को ही पढ़ना चाहिए। मोक्ष का सरल मार्ग जिसको प्रगट किया है, ज्ञान में उद्यमी है और ज्ञान योग से युक्त है, उन ज्ञानियों की निर्जरा का माप कौन कर सकता है ? अल्प ज्ञानी-अर्थात् अगीतार्थ को, दो, तीन, चार और पाँच उपवास से जो शुद्धि होती है, उससे अनेक गुणों की शुद्धि हमेशा खाने वाले ज्ञानी गीतार्थ की होती है। एक दिन में तपस्वी हो सकता