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श्री संवेगरंगशाला
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ही प्रभाव है । इसलिए सभी सिद्धियों का और मंगलों का इच्छित आत्मा को नमस्कार का सर्वत्र सदा सम्यग् चिन्तन करना चाहिए । सोते, उठते, छींकते, खड़े होते, चलते, टकराते, या गिरते, इत्यादि सर्व स्थानों पर निश्चय इस परम मन्त्र का प्रयत्नपूर्वक बार-बार स्मरण करना चाहिए | पुण्यानुबंधी पुण्य वाले जिसने इस नमस्कार को प्राप्त किया है उसने नरक और तिर्यंच की गति को अवश्यमेव रोक दी है । निश्चय ही पुनः वह कभी भी अपयश और गोत्र को नहीं प्राप्त करता और जन्मान्तर में भी यह नमस्कार प्राप्त होना उसे दुर्लभ नहीं है । और जो मनुष्य एक लाख नमस्कार मन्त्र को अखंड गिनकर श्री जैनेश्वर भगवान की तथा संघ की पूजा करता है वह श्री तीर्थंकर नामकर्म का बन्धन करता है । और नमस्कार के प्रभाव से अवश्य जन्मान्तर में भी जाति, कुल, रूप, आरोग्य और सम्पत्तियाँ इत्यादि श्रेष्ठ मिलती हैं । चित्त से चिन्तन किया हुआ, वचन से प्रार्थना की हो और काया से प्रारम्भ किया हुआ, तब तक नहीं होता कि जब तक नमस्कार मन्त्र स्मरण नहीं किया । और इस नमस्कार मन्त्र से ही मनुष्य संसार में कदापि नौकर-चाकर, दुर्भागी, दुःखी, नीच कुल में जन्म और विकल इन्द्रिय वाला नहीं होता है । परमेष्ठि को भक्तिपूर्वक नमस्कार करने से इस लोक और परलोक में सुखकर होता है तथा इस लोक परलोक के दुःखों को चूरण करने में समर्थ है | अधिक क्या कहें ? निश्चय जीवों को जगत में ऐसा कुछ भी नहीं है कि जिसकी भक्ति और नमस्कार से प्राप्ति में समर्थ न हो ।
यदि परम दुर्लभ परमपद मोक्ष सुख भी इस नमस्कार मन्त्र से प्राप्त करता है, तो उसके साथ अर्थात् अनाज के साथ घास के समान आनुसंगिक सिद्ध होते हैं, इसके बिना अन्य सुख की कौन-सी गिनती है ? जिसने मोक्ष नगर को प्राप्त किया है या प्राप्त करेंगे अथवा वर्तमान काल में प्राप्त करते हैं वह श्री पंच नमस्कार के गुप्त महा सामर्थ्य का योग समझना । दीर्घकाल तप किया हो, चारित्र का पालन किया हो और अति श्रुत का अभ्यास किया हो, फिर भी यदि नमस्कार मन्त्र में प्रीति नहीं है तो वह सब निष्फल जानना । चतुरंग सेना का नायक सेनापति जैसे सेना का दीपक रूप प्रकाशनमान है वैसे दर्शन, तप, ज्ञान और चारित्र का नायक यह भाव नमस्कार उन गुणों का दीपक समान है । इस जीव ने भूतकाल में भाव नमस्कार बिना निष्फल द्रव्य लिंग (वेश से चारित्र) को अनन्ती बार स्वीकार किया और छोड़ दिया । इस तरह जानकर हे सुन्दर मुनि ! आराधना में लगे मन वाला तू भी प्रयत्नपूर्वक शुभ भावना से इस नमस्कार मन्त्र को मन में धारण कर । हे देवानु प्रिय !