________________
४२२
श्री संवेगरंगशाला
वैभव तार तम्य योग वाला-अल्प, अल्पतर आदि न्यूनता वाला है, इसलिए 'मैं पण्डित हूँ' ऐसा इस जगत में कौन अभिमान करे ! दुःशिक्षित अज्ञ कवियों की रचना, शास्त्र विरुद्ध प्रकरण अथवा कथा प्रबन्धों को दृढ़तापूर्वक पढ़ना फिर भी उसका मद करने का भी अवकाश ही नहीं है। केवल सामायिक, आवश्यक का श्रुतज्ञान भी मद रहित निर्मल केवल ज्ञान को प्राप्त करवाता है और श्रुत समुद्र के पारगामी भी मद से दीर्घकाल तक अनन्त काया में रहता है। इसलिए सर्व प्रकार से मद को नाश करने वाला श्रुत को प्राप्त करके भी उसका अल्प भी मद नहीं करना और अनशन वाला तुझे तो विशेषतया नहीं करना चाहिए। क्या तूने सुना नहीं कि श्रुत के भण्डार भी स्थूल भद्र मुनि को श्रुतमद के दोष से गुरू ने अन्तिम चार पूर्व को अध्ययन नहीं करवाया था ? वह इस प्रकार
आर्य स्थल भद्र सूरि की कथा पाटिल पुत्र नगर में प्रसिद्ध यश वाला नन्द राजा का सारे निष्पाप कार्यों को करने वाला शकडाल मन्त्रीश्वर था और उसका प्रथम पुत्र स्थूल भद्र दूसरा श्रीयक तथा रूपवती यक्षा आदि सात पुत्री थीं। उसमें सेना, वेणा और रेणा ये तीनों छोटी पुत्रियाँ अनुक्रम से, एक दो, और तीन बार सुनते ही नया श्रुत याद कर सकती थीं। श्री जिन चरण की पूजा वन्दन शास्त्रार्थ का चिन्तन आदि धर्म को करते उनका दिन अच्छी तरह से व्यतीत होता था। वहीं रहने वाला कवि वररूचि ब्राह्मण प्रतिदिन एक सौ आठ काव्यों से राजा की स्तुति करता था उसकी काव्य शक्ति से प्रसन्न होकर राजा उसे दान देने की इच्छा करता था, परन्तु शकडाल मन्त्री उसकी प्रशंसा नहीं करने से नहीं देता था। इससे वर रूचि ने पुष्प आदि भेंट देकर शकडाल की पत्नी की सेवा करने लगा। तब उसने उससे कहा कि - मेरा कोई कार्य हो तो कहो ! उसने कहा-कि आप के मन्त्री को इस तरह समझाओ कि जिससे राजा के सामने मेरे काव्य की प्रशंसा करे। उसने वह स्वीकार किया और मन्त्री को कहा कि-वररूचि की प्रशंसा क्यों नहीं करते ? मन्त्री ने कहा कि-मिथ्या दृष्टि की प्रशंसा कैसे करूं ? बार-बार पत्नी के कहने पर उसका वचन मन्त्री ने स्वीकार किया और राजा के सामने 'काव्य सुन्दर है' इस तरह उसकी प्रशंसा की। इससे राजा ने उसे एक सौ आठ सौना मोहर दी और प्रतिदिन उसकी उतनी आजीविका प्रारम्भ हो गई। इस तरह धन का क्षय होते देखकर मन्त्री ने कहा कि-देव ! इसे आप दान क्यों देते हो? राजा ने कहा कि तूने इसकी