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श्री संवेगरंगशाला
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तब उसने भी विस्मित हृदय वाले श्रेणिक को 'तीन जौ के दानों के प्रमाण माँस की याचना' आदि सारा वृत्तान्त यथा स्थित सुनाया। उसके बाद राजा ने और शेष सभी लोगों ने निर्विवाद रूप में माँस को अत्यन्त महंगा और अति दुर्लभ रूप में स्वीकार किया। इस प्रकार सम्यग् रूप सुनकर हे मुनिवर ! आराधना के मन वाला तूने पूर्व में मांस सेवन किया था उसे याद नहीं करेगा। इस तरह प्रसंगानुसार माँस आदि के स्वरूप कथन से सम्बद्ध मद्य द्वार को कहकर अब विषय द्वार को कहते हैं।
दूसरा विषय प्रमाद का स्वरूप :-इसके पहले ही मद्य के जो दोष कहे हैं वही दोष विषय सेवन में भी प्रायः विशेषतया होते हैं। क्योंकि इस विषय में आसक्त मनुष्य विशेषतया शिथिल होता है। इस कारण से विषय की (वि+ सय=विषय) ऐसी नियुक्ति (व्याख्या) की है । यह विषय निश्चय महा शल्य है, परलोक के कार्यों में महाशत्रु है, महाव्याधि है, और परम दरिद्रता है। जैसे हृदय में चुभा हुआ शल्य (कांटा) प्राणियों को सुखकारक नहीं होता है, वैसे हृदय में विचार मात्र भी विषय दुःखी ही करता है। जैसे कोई महाशन विविध दुःख को देता है वैसे विषय भी दुःख को देता है अथवा शत्र तो एक ही भव में और विषय तो परभव में भी दुःखों को देता है। जैसे महाव्याधि इस भव में पीड़ा देता है वैसे यह विषय भी यहाँ पीड़ा देता है, इसके अतिरिक्त वह अन्य भवों में भी अनन्तगुणा पीड़ा देता है । जैसे यहाँ महादरिद्रता सभी पराभवों का कारण है वैसे विषय भी अवशय पराभवों का परम कारण है। जो विषय रूपी मांस में आसक्त हैं उन अनेक पुरुषों ने बहत प्रकार से पराभव के स्थान प्राप्त किये हैं, प्राप्त करते हैं और प्राप्त करेंगे। विषयासक्त मनुष्य जगत को तृण समान मानता है, विषय का संदेह हो वहाँ भी प्रवेश करता है, मरण के सामने छाती रखता है, अर्थात् डरता नहीं है, अप्रार्थनीय नीच को भी प्रार्थना करता है, भयंकर समुद्र को भी पार करता है तथा भयंकर वेताल को भी सिद्ध करता है । अधिक क्या कहें ? विषय के लिए मनुष्य यम के मुख में भी प्रवेश करता है, मरने के लिए भी तैयार होता है । विषयातुट जीव बड़े-बड़े हितकर कार्य को छोड़ कर एक मुहर्त मात्र में वैसा पाप कार्य करता है कि जिससे जावज्जीव तक जगत में हांसी होती है। विषय रूपी ग्रह के आधीन पड़ा मूढ़ात्मा पिता को भी मारने का प्रयत्न करता है, बन्धु को भी शत्रु समान मानता है और स्वेच्छा से कार्यों को करता है । विषय अनर्थ का पंथ है, पापी विषय मान महत्व का नाशक है, लघुता का मार्ग है और अकाल में उपद्रवकारी है। विषय अपमान