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श्री संवेगरंगशाला
कपड़े वाला, खाज से शरीर में खरोंच वाला, रेखाओं का घर खडी लगे अंग वाला, चारों तरफ बिखरे हुए बाल वाला, कर्कश स्पर्श वाली चमड़ी वाला, कमर में बांधा हुआ चमड़े के पट्टे की रगड़ से हाथ में आंटी के समूह वाला और उजागर से लाल आँखों वाला जुआरी की किसके साथ तुलना कर सकते हैं ।
इस तरह से जुआरी का प्रतिदिन जुआ बढ़ता जाता है उसमें दृढ़ राग वाला, क्षण-क्षण में अन्यान्य लोगों के साथ में कषायों को करने वाला, वह विचारा घर में कुछ भी नहीं मिलने पर जुए में स्त्री को भी हारता है फिर उसको छुड़ाने के लिये चोरी करने की इच्छा करता है, बाद में चोर के परिणाम वाला वह चोरी में ही प्रवृत्ति करता है और इस तरह प्रवृत्ति करते वह पापी तीसरा पाप स्थानक में कहे सारे दोषों को प्राप्त करता है । और इस . प्रकार समस्त अनर्थों के समूह को निस्तार करने के लिए कुलदेवी, यक्ष, इन्द्र आदि के पास मानता है कि "वह शत्र अधिक दुःख को प्राप्त करे। सारे जुआरी का नाश हो जाए। मेरे अनर्थ शान्त हो जाये । और मेरे पास बहुत धन हो जाये"। इस तरह चिन्तन करते अपूर्ण इच्छा वाला उस जुआरी द्वारा वद्य बन्धन, कैद, अंगों का छेदन तथा मृत्यु को भी प्राप्त करता है, और इस तरह जुए में आसक्त कुल, शील, कीर्ति, मैत्री, पराक्रम अपना कुलक्रम कुलाचार, शास्त्र धर्म, अर्थ और काम का नाश करता है। इस प्रकार इस लोक में गुणों से रहित लोगों में धिक्कार को प्राप्त करता जुआरी सद्गति का हेतुभूत सम्यग गुणों को प्राप्त करने में समर्थ हो सकता है ? कामुक मनुष्य तो काम क्रीड़ा से खुजली करने के समान सुख वासना जन्य अल्पमात्र भी कुछ सुख का अनुभव करता है। परन्तु कुत्ते के समान रस रहित पुरानी सूखी हड्डी के टुकड़ों को चबाने तुल्य जुआ खेलने से जुआरी निश्चय क्या सुख का अनुभव कर सकता है ? जुए से घर की सम्पत्ति, शरीर की शोभा, शक्ति शिष्टता रूप सम्पत्ति और सुख सम्पत्ति अथवा इस लोक परलोक के गुणरूपी सम्पत्ति सारी शीघ्र नाश होती है। इस विषय में शास्त्र के अन्दर राज्य आदि को हारने वाले नल राजा, पांडव आदि राजाओं के अनेक प्रकार की कथानक सुनने में आती हैं।
और दूसरे (१) अज्ञान, (२) मिथ्या ज्ञान, (३) संशय, (४) राग, (५) द्वेष, (६) श्रुति-स्मृति भ्रंश, (७) धर्म में अनादर तथा अन्तिम (८) मन, वचन, काय योगों का दुष्प्रणिधान । इस तरह प्रस्तुत प्रमाद के आठ भेद भी कहे हैं।