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श्री संवेगरंगशाला
द्वेषी बनता है । अतः विकथा असत्यवादी, रागी और द्वेषी उत्पन्न का कारण है, इसलिए वह पाप का हेतु होने से साधुओं को सारी विकथाओं का त्याग करना योग्य है । विकथा महा प्रमाद है, उत्तम धर्म ध्यान में विघ्नकारक है, अज्ञान का बीज है, और स्वाध्याय में व्याघात करता है। और विकथा अनर्थ की माता है, परम असद्भाव का स्थान है, अशिस्त का मार्ग है और लघुता कराने वाला है। विकथा समिति का घातक है, संयम गुणों का हानि करने वाली, गुप्तियों का नाशक है और कुवासना का कारण है। इस कारण से हे आर्य ! तू विकथा का सर्वथा त्याग करके हमेशा मोक्ष का सफल अंगभूत स्वाध्याय के प्रति प्रयत्नशील बनो। और स्वाध्याय से जब अति श्रमिक होते हों तब तूं मन में परम सन्तोष धारण करके उसी कथाओं के संयम गुण से अविरुद्ध संयम मार्ग सम्यग् पोषक कहे जैसाकि--
गणकारी स्त्री कथा :-तीन जगत के तिलक समान पुत्र रत्न को जन्म देने वाली मरूदेवा माता अन्त में अंतकृत केवली बने और उसी समय मुक्ति के अधिकारी बने। सुलसा सती ने पाखंडियों के वचनरूपी पवन से उड़ती मिथ्यात्वरूपी रज के समूह से भी अपना सम्यक्त्व रत्न को अल्पमात्र मोक्ष मार्ग को मलिन नहीं किया। मैं मानता हूँ कि ऐसी धन्य और पवित्र स्त्री जगत में और कोई नहीं है क्योंकि जगत गुरु श्री वीर परमात्मा ने उसके गुणों का वर्णन किया है इस प्रकार उस एक को ही आगम में कहा है इत्यादि।
__ गुणकारी भक्त कथा:-राग द्वेष रहित गृहस्थ के वहाँ विद्यमान बयालीस (४२) दोष से रहित, संयम पोषक, रागादि रहित चारित्र जीवन को टिकाने वाला, वह भी शास्त्रोक्त विधिपूर्वक संगत मात्र मौनपूर्वक प्राप्त करना, ऐसा ही भोजन हमेशा उत्तम साधुता के लिए करना योग्य है।
गुणकारी देश कथा :-जहाँ आनन्द को देने वाला श्री जिनेश्वर भगवन्त का मन्दिर हो, तथा तेरह गुण जहाँ व्यतिरेक युक्त हो जैसा कि १-कीचड़ बहुत न हो, २-त्रस जीवोत्पत्ति बहुत न हो, ३-स्थंडिल भूमि निरवद्य हो, ४-वसति निर्दोष हो, ५-गोरस सुलभ मिलता हो, ६-लोग भद्रिक परिणामी और बड़े परिवार वाले हों, ७-वैद्य भक्ति वाले हों, ८-औषधादि सुलभ मिलता हो, ६-श्रावक संपत्तिवान और बड़े परिवार वाला हो, १०-राजा भद्रिक हो, ११-अन्य धर्म वाले से उपद्रव नहीं होता हो, १२-स्वाध्याय भूमि निर्दोष होता हो और १३-आहार पानी आदि सुलभ मिलते हों। इसके अतिरिक्त जहाँ साधार्मिक लोग बहुत हों, जिस देश में राजादि के उपद्रव नहीं हों,