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श्री संवेगरंगशाला
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ब्राह्मण मांस को नहीं खाता है वह उत्तम गोत्र वाला पुत्र सहित और गोत्रीय मनुष्य सहित सूर्य लोक में पूजित बनता है। इस प्रकार लौकिक और लोकोत्तर शास्त्रों में मांस भक्षण का निषेध किया है, इसीलिए उस अवस्तु मांस को धीर पुरुष दूर से ही सर्वथा त्याग करे ।
मांस खाने वाले का अवश्य इस लोक में अनादर करते हैं, जन्मातर में कठोरता, दरिद्रता, उत्तम जाति कुल की अप्राप्ति, अति नीच पाप कार्यों को करके, आजीविका प्राप्त करके, शरीर पर आसक्ति, भय से हमेशा पीड़ित, अति दीर्घ रोगी, और सर्वथा अनिष्ट जीवन होता है। मांस बेचने वाले को धन के लोभ से, भक्षक उपयोग करने से और जीव को वध बन्धन करने से ये तीनों माँस के कारण हिंसकत्व हैं। जो कभी भी मांस को नहीं खाता है, वह अपने अपयशवाद को नाश करता है और जो उसे खाता है उसे नीच स्थानों को दुःखद संयोग का सेवन करता है। इस तरह मांस अत्यन्त कठोर दुःखों वाली नरक का एक कारण है, अपवित्र, अनुचित और सर्वथा त्याग करने योग्य है, इस लिये वह ग्रहण करने योग्य नहीं है। जो व्यवहार में दुष्ट है और लोक में तथा शास्त्र में भी जो दूषित है वह मांस निश्चय अभक्ष्य ही है, उसे चक्ष से भी नहीं देखना चाहिये। हाथ में मांस को पकड़ा हो चंडाल आदि भी किसी समय मार्ग में सामने आते सज्जन को देखकर लज्जा प्राप्त करता है। यदि अनेक दोष के समूह मांस को मन से भी खाने की इच्छा नहीं करता है, उसने, गाय, सोना, गोमेघ यज्ञ और पृथ्वी के लाखों का दान दिया है, अर्थात् उसके समान पुण्य को प्राप्त करता है। मैं मानता हूँ कि मांसाहारी जैसे दूसरे के मांस को खाता है, वैसे अपना ही मांस यदि खाता है तो निश्चय अन्य को पीड़ा नहीं होने से उस प्रकार का दोष भी नहीं लगता है। परन्तु ऐसा सम्भव नहीं है। अन्यथा तीन जौं जितने मांस के लिये अभय कुमार को अट्ठारह करोड़ सोना मोहर मिली, ऐसा सुना जाता है। उसकी कथा इस प्रकार है :
अभय कुमार को कथा राजगृह नगर में अभय कुमार आदि मुख्य मंत्रियों के साथ राज सभा में बैठा था, श्रेणिक राजा के सामने विविध बातें चलते समय एक प्रधान ने कहा कि-हे देव ! आपके नगर में अनाजादि के भाव तेज और दुर्लभ हैं, केवल एक माँस सस्ता और सर्वत्र सुलभ है। उसके वचन सामंत और मंत्रियों