________________
श्री संवेगरंगशाला
४४१
छेदन करने वाला, प्राणों को लेने वाला, मांस बेचने वाला, खरीदने वाला, उसको पकाने वाला, दूसरे को परोसने वाला और खाने वाला ये आठों घात करने वाले माने गये हैं। जो मनुष्य मांस भक्षी है वह अल्पायुष्य वाले, दरिद्री, दूसरों की नौकरी से जीने वाला और नीच कुल में जन्म लेता है। इत्यादि मांस की दुष्टता जानने के लिए लौकिक शास्त्र वचन अनेक प्रकार के हैं । और 'मद्य माँस नहीं खाना' आदि लोकोक्तरिक वचन भी है। अथवा जो लौकिक शास्त्र का वर्णन यहाँ पूर्व में बतलाया है वह भी इस ग्रन्थ में रखा है इससे इस वचन को निश्चय लोकोत्तरिक वचन जानना। क्योंकि सुवर्ण रस से युक्त लोहा भी जैसे सुवर्ण बनता है वैसे मिथ्यादृष्टियों ने कहा हुआ भी श्रुत समकित दृष्टि ने ग्रहण करने से सम्यग् श्रुत बन जाता है।
यहाँ यह प्रश्न कहते हैं कि-यदि पण्डितजनों ने मांस को जीव का अंग होने से त्याग करने योग्य है तो क्या मूंग आदि अनाज भी प्राणियों का अंग नहीं है कि जिससे उसे दूषित नहीं कहा ? इसका उत्तर देते हैं कि मंग आदि अनाज जो जीवों का अंग है वह जीव पंचेन्द्रियों के समान रूप वाले नहीं होते हैं, क्योंकि पंचेन्द्रिय जीव में जिस तरह मानस विज्ञान से युक्त चेतना वाला होता है, और तीक्ष्ण शास्त्रों से शरीर के एक भाग रूप माँस काटने पर प्रतिक्षण चीख मारता उसे जैसे अत्यन्त दुःख होता है उस तरह जीव रूप में समान होने पर भी एक ही इन्द्रिय होने से मूंग आदि के जीवों को उस प्रकार का दुःख नहीं होता है, तो उनकी परस्पर तुलना कैसे हो सकती है ? अरे मारो ! जल्दी भक्षण करो। इत्यादि अत्यन्त क्रूर वाणी को वे कान से स्पष्ट सुन सकते हैं, अति तेज चमकती तीक्ष्ण तलवार आदि के समूह को हाथ में धारण करते पूरुष को और उसके प्रहार को वह भय से डरा हआ चपल नेत्रों की पुतली शीघ्र देखती हैं, चित्त में भय का अनुभव करता है, और भय प्राप्त करते वह कांपते शरीर वाला विचारा ऐसा मानता है कि अहो ! मेरी मृत्यु आ गई। इस तरह जीवत्व तुल्य होने पर पंचेन्द्रिय जीव समान तीक्ष्ण दुःख को स्पष्ट अनुभव करता है। उस तरह मूंग आदि एकेन्द्रिय जीव अनुभव नहीं करते हैं। तथा पंचेन्द्रिय जीव परस्पर साक्षेप मन, वचन और काया इन तीनों द्वारा अत्यन्त दु:ख को अवश्य प्रगट रूप अनुभव करता है और मूंग आदि एकेन्द्रिय तो प्राप्त दुःख को केवल काया से और वह भी कुछ अल्पमात्र अव्यक्त रूप में भोगता है। और दूसरा हिंसक को पास में आते देखकर मरण से डरता वह विचारा पंचेन्द्रिय जीव किस तरह अपने जीवन की रक्षा के लिए जिस तरह इधर-उधर हलचल करता है, हैरान होता