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श्री संवेगरंगशाला
समान सर्व भावों को अदृश्य-आवरण करने वाला इसके समान दूसरा अन्धकार नहीं है। इसलिए ध्यान में विघ्नकारी निद्रा का सम्यग विजय करो, क्योंकि-श्री जैनेश्वर भगवान ने भी वत्स देश राजा की बहन जयंती श्राविका को कहा था कि 'धर्मी' व्यक्ति को जागृत और अधर्मी को निद्रा में रहना श्रेयकर है । सोये हुये का ज्ञान सो जाता है, प्रमादी का ज्ञान शंका वाला और भूल वाला बनता है और जागृत, अप्रमादी का ज्ञान स्थिर और दृढ़ बनता है। और अजगर के समान जो सोता है उसका अमृत तुल्य श्रुतज्ञान नाश होता है। अमृत तुल्य श्रुतज्ञान नाश होते वह बैल समान बन जाता है। इसलिए हे देवानु प्रिय ! निद्रा प्रमादरूप शत्रु सेना को जीतकर अखण्ड जागृत दशा में तू स्थिर अभ्यस्त सूत्र-अर्थ वाला बनो। इस तरह यहाँ चौथा निद्रा नामक अन्तर द्वार कहा है, अब पांचवाँ विकथा द्वार को भी विस्तारपूर्वक कहता हूँ।
पांचवाँ विकथा प्रमाद का स्वरूप :-विविधा, विरूप अथवा संयम जीवन में बाधक रूप से जो विरूद्ध कथा हो उसे भी विकथा कहते हैं। इस विषय की अपेक्षा से उसके स्त्री कथा, भक्त कथा, देश कथा और राज कथा इस तरह चार प्रकार सिद्धान्त में कहा है। इसको अलग-अलग रूप में कहते हैं।
(१) स्त्री कथा :-अर्थात् स्त्रियों की अथवा स्त्रियों के साथ में कथाबातें करना । उस कथा द्वारा जो संयम का विरोध हो अथवा बाधक करता है उस कथा को विकथा कहते हैं। यह स्त्री कथा जाति, कुल रूप और वेश के भेद से चार प्रकार की होती है। उसमें भी क्षत्रियाणी, ब्राह्मणी, वैश्यी और क्षुद्री इन चार में से किसी भी जाति की स्त्री की प्रशंसा अथवा निन्दा करना उसे जाति कथा कहते हैं। उसका स्वरूप इस तरह है जैसे कि बाल विधवा, क्षत्रियाणी, ब्राह्मणी और वैश्य की स्त्री का जीना भी मरण के समान है तथा सर्व लोक को शंका पात्र होने से उसके जीवन को धिक्कार हो। मैं मानता है कि-जगत में केवल एक क्षद्र की स्त्री को ही धन्य है कि जो नये-नये अन्य पुरुष को पति करने पर भी दोष नहीं मानते। उग्र आदि उत्तम या अन्य हल्की कुल में जन्मी हई किसी भी स्त्री के जिस कूल के कारण प्रशंसा अथवा निन्दा करना उसे कुल कथा कहते हैं जैसे कि-चौलुक्य वंश में जन्मी हुई स्त्रियों का जो साहस होता है, ऐसा अन्य स्त्रियों में नहीं होता है । जो कि प्रेम रहित होने पर भी पति मरे तब उसके साथ अग्नि में प्रवेश करती हैं। आन्ध्र प्रदेश या अन्धी आदि किसी की भी रूप की प्रशंसा अथवा निन्दा करना उस कथा के जानकार पुरुषों ने रूप कथा कहा है । जैसे कि-विलासपूर्वक नाचते