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श्री संवेगरंगशाला योग्य नहीं है। इसलिए शरद ऋतु के बादल समान नाश होने वाले विषयों से मुझे कोई सम्बन्ध नहीं है । यह सुनकर सेठ को संवेग उत्पन्न हुआ और विचार किया कि-यह पापी विषय मुझे भी अवश्य छोड़ देंगे, अतः अवश्य नश्वर स्वभाव वाले परिणाम से कटु दुःखदायी दुर्गति का कारणभूत, राजा, चोर आदि को लुटाने योग्य, हृदय में खेद कराने वाला, मुश्किल से रक्षण करने योग्य, दुःखदायी, और सर्व अवस्थाओं में तीव्र मूढ़ता प्रगट कराने वाले इन विषयों से क्या लाभ होता है ? ऐसा चिन्तन कर उस सेठ ने सर्व परिग्रह छोड़कर सद्गुरू के पास उत्तम मुनि दीक्षा को स्वीकार की। कर्मवश तथाविध विशिष्ट वैभव होने पर भी इस तरह ऐश्वर्य को नाशवान समझकर कौन बुद्धिशाली उसका मद करे ?
तथा इस प्रकार आज्ञाधीन मेरे शिष्य, मेरी शिष्याएँ और मेरे संघ की सर्व पर्षदा और स्व-पर शास्त्रों के महान् अर्थ युक्त मेरी पुस्तकों का विस्तार, मेरे वस्त्र पात्रादि अनेक हैं तथा मैं ही नगर के लोगों में ज्ञानी-प्रसिद्ध हूँ इत्यादि साधु को भी ऐश्वर्य का मद अति अनिष्ट फलदायक है। इस तरह प्राणियों की सद्गति की प्राप्ति को रोकने वाला, गाढ़ अज्ञान रूपी अन्धकार फैलाने वाला तथा विकार से बहुत दुःखदायी, ये आठ प्रकार के मद तुझे नहीं करना चाहिए। अथवा तपमद और ऐश्वर्य मद इन दो के बदले बुद्धि-बल और प्रियता मद भी कहने का है उसका स्वरूप इस प्रकार जानना । इसमें बुद्धि मद अर्थात् शास्त्र को ग्रहण करना, दूसरे को पढ़ाना, नयी-नयी कृतियाँ-शास्त्र रचना, अर्थ का विचार करना और उसका निर्णय करना इत्यादि अनन्त पर्याय की अन्यान्य जीवों की अपेक्षा से बुद्धि वाला, बुद्धि के विकल्पों में जो पुरुषों में सिंह समान हो गये हैं उन पूर्व के ज्ञानियों का अतिशय वाला विज्ञानादि अनंत गुणों को सुनकर आज के पुरुष अपनी बुद्धि का मद किस तरह करे ? अर्थात् पूर्व के ज्ञानियों की अपेक्षा से वर्तमान काल के जीवों की बुद्धि अति अल्प होने से उसका मद किस तरह कर सकता है ? दूसरा लोक प्रियता का मद करना योग्य नहीं है, क्योंकि कुत्ते के समान सैंकड़ों मीठे चाटु वचनों से स्वयं दूसरे मनुष्यों का प्रिय बनता है, फिर भी खेद की बात है कि वह रंक बच्पन का गर्व करता है। तथा उस गर्व से ही वह मानता है कि --मैं एक ही इनका प्रिय हैं और इसके घर में सर्व कार्यों में मैं ही कर्ता, धरता है। परन्तु वह मूढ़ यह नहीं जानता कि पूर्व में किये अति उत्तम पुण्यों से पुण्य के भण्डार बने 'यह पूण्य वाले का मैं सर्व प्रकार से नौकर बना हूँ।' और किस समय में भी उसका तथा किस प्रकार प्रियता की अवगणना करके यदि वह सामने है अप्रियता