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श्री संवेगरंगशाला
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मल्लदेव राजा की कथा श्रीपुर नगर में अजोड़ लक्ष्मी की विशालता वाले शरदचन्द्र के समान यश समूह वाला, विजय सेन नाम का राजा राज्य करता था। वह एक समय जब सुखपूर्वक आसन पर बैठा था, तब दक्षिण दिशा में भेजा हुआ सेनापति आया और पंचाग से नमस्कार करके पास में बैठा। उसके बाद उसे राजा ने स्नेह भरी आँखों से देखकर कहा कि-तेरा अति कुशल है ? उसने कहा किआपके चरण कृपा से केवल कुशल ही नहीं, परन्तु दक्षिण के राजा को जीता हूँ। इससे अत्यन्त हर्ष की श्रेष्ठ प्रसन्न नेत्रों वाले राजा ने कहा कि-कहो उसे किस तरह जीता ? उसने कहा कि-सुनो ! आपकी आज्ञा से हाथी, घोड़े, रथ और यौद्धा रूप चतुर्विध सेना के यूध सहित लेकर मैं दक्षिण देश के राजा के सीमा स्थल पर रूका और दूत द्वारा उसे मैंने कहलवाया कि-शीघ्र मेरी सेवा को स्वीकार करो अथवा युद्ध के लिये तैयार हो। ऐसा सुनकर प्रचण्ड क्रोधित हए उस राजा ने दूत को निकाल दिया और अपने प्रधान पुरुषों को आदेश दिया कि-अरे ! अभी ही शीघ्र शस्त्र सजाने की सूचना देकर भेरी बजा दो, चतुर्विध सैन्य को तैयार करो, जयहस्ती को ले आओ, मुझे शस्त्र दो और सेना को शीघ्र प्रस्थान करने की आज्ञा दो। फिर मनुष्यों ने उसी क्षण स्वीकार करके, सारे तैयार हुए। एक साथ तीन जगत का ग्रास करने की इच्छा वाला हो, इस तरह वह मगर, गरूड़, सिंह आदि चिह्न वाली ध्वजाओं से भयंकर सेना के साथ मेरे सामने चला । चरपुरुषों के कहने से उसे आते जानकर मैंने भी सेना को तैयार करके लम्बे प्रस्थान कर उसके सन्मुख जाने लगा, फिर उसके समीप में पहुंचने पर चरपुरुष द्वारा उसकी सेना अपरिमित बहुत विशाल है। ऐसा जानकर मैं कपट युद्ध करने की इच्छा से उसे दर्शन देकर अति वेग वाले घोड़े से अपनी सेना को शीघ्र वहाँ से दूर वापिस ले चला कि जिससे मुझे डरा हुआ और वापिस जाते हुये जानकर उसका उत्साह अधिक बढ़ गया और मुग्ध बुद्धि वाला वह राजा मेरी सेना के पीछे पड़ा। इस तरह प्रतिदिन मेरे पीछे चलने से अत्यन्त थका हुआ संकट में आ गया। निर्भय और प्रमादी चित्त वाला उसकी सेना को देखकर मैं सर्व बल से लड़ने लगा और हे देव ! आपके प्रभाव से अनेक सुभटों द्वारा भी उस शत्रु सैन्य को मैंने अल्पकाल में हरा दिया। उस समय सेनापति के आदेश अनुसार पुरुषों ने उस शत्रु राजा के भण्डार और आठ वर्ष का उसका पुत्र विजय सेन राजा को दिया। फिर सेनापति ने कहा कि-हे देव ! यह भण्डार दक्षिण राजा का है और पुत्र भी उसका ही है, अब इसका जो उचित लगे वैसा करो।